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________________ एकर वहीं एक पीछे पर बैठकर सोचने लगा पूजा के समय ऐसा क्यों हुआ, सब काम उल्टे-सीधे क्यों हुए ? कभी ऐसा नहीं हुआ था। मेरी गलती के कारण पूजा के वक्त कभी न बोलनेवाले आचार्य को आज बोलना पड़ा। मैं उनके व्रतभंग का कारण बना। अब वह यात्री यदि न लौटा तो गुरुजी से क्या कहेंगे ? रात बीती, सुबह हुई इतने में कितना उलट-फेर हो गया ! कितना द्वन्द्व ! कल के राजमहल के उत्सव का सारा आनन्द ही जाता रहा।' यां उसके मन में विचार- संघर्ष चल रहा था । -- अच्चान की भी यही दशा थी। वह भी सोच रहा था-' आज आचार्य के कान में गरम पानी क्यों पड़ गया इस पापी हाथ से ? आचार्यजी का कोमल शरीर गरमी के कारण झुलस गया होगा न ? भगवान् ने आज ऐसा बेहोश क्यों कर दिया ? इस बीच में वह यात्री तूफान सा आया, बवण्डर सा गया... यदि एम्बार के कहे अनुसार वह न लौटा तो गुरुजी से क्या कहेंगे ?" यो सवालों का ताँता ही बन गया था। कहीं बारिश और कहीं बाढ़ । अचानक वही चिरपरिचित आचार्यजी की आवाज- 'अच्चान! एम्बार !" सुन पड़ी। आवाज सुनते ही दोनों ने एकदम अचकचाकर उठ खड़े होने की कोशिश की। उठ न सके। चलना चाहा, पर पैर उठे ही नहीं। उन्हें लग रहा था कि उनकी सारी शक्ति समाप्त हो चुकी है। मुँह से बात तक न निकली। गला रुंध गया। एक-दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे। उनके उत्तर देने के पहले आचार्यजी खुद ही पाकशाला में पहुँच गये । इन दोनों को देखते ही आचार्यजी समझ गये कि दोनों पर कुछ आतंक छाया हुआ है। सुबह से ही इन शिष्यों के आचरण को देखकर समझ गये थे कि वे रोज की तरह सक्रिय नहीं हैं। वे इसका कारण जानना चाहते थे। वे भी कुछ अशान्ति का ही अनुभव कर रहे थे। उन्हें भी लग रहा था कि आज पूजा के वक्त कभी न बोलनेवाले को बोलना क्यों पड़ा। अपनी त्रुटि की जानकारी होने पर भी उसका अता-पता नहीं लग रहा था। इसी वजह से आज एकान्त-चिन्तन में भी बाधा पड़ गयी थी। जल्दी ही वे उठकर चले आये थे । "वह शिल्पी कहाँ है ?" आचार्य का सीधा सवाल था । · उन दोनों के अन्तरंग में भी यही सवाल घुमड़ रहा था; अब गुरुजी के इस सबाल ने एक बृहत् रूप धारण कर लिया। दोनों एकदम उठ खड़े हुए। खोयी शक्ति उनमें फिर आ गयी थी। अच्चान ने एम्बार को और एम्बार ने आचार्य की ओर देखा। पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन 165
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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