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________________ जाएगा। मीठी बातों से हो रहस्य को जानने की युक्ति वे जानते हैं।" "मतलब?" "मतलब, कल वे खुद सब पूछ-ताछ करेंगे। तब आप कहे बिना कैसे चुप रह सकेंगे? इसीलिए उन्होंने सावधानी से आपकी देखभाल करने का हमें आदेश दिया है।" पान्ध कुछ चिन्ताक्रान्त हुआ। थोड़ी देर मौन रहकर फिर बोला, "उन्हें रोक कौन सकता है ? आपने यह तो नहीं बताया कि वे कौन हैं ?" "अच्छा, बताऊँगा।" कहकर अच्चान बिछाने के लिए दरी लेने चला गया। "हम भी इन्हीं के साथ रहकर रात बिताएँगे और जब तक नींद न आए तब तक गुरुजी के बारे में बताएँगे।" एम्बार ने कहा। अचान दरी लेकर आ गया। एम्बार की बातों ने यात्री के मन पर गहरा प्रभाव डाला। उसी धुन में वह चिन्तन करता रहा। सर्वत्र मौन छाया रहा। दरी लाते ही बिछाकर अच्वान लेट गया। पाकशाला के इस पाकशास्त्री को विशेष थकावट हुई होगी, या आज अधिक काम न होने के कारण, कुछ आलस्य हुआ होगा। अलावा इसके आचार्यजी के विषय में एम्बार ऐसी कोई विशेष जानकारी नहीं रखता जिसे घह स्वयं नहीं जानता हो-ऐसी भी भावना होने के कारण लेस्ते ही उसे बहुत जल्दी नींद आ गयी। थोड़ी देर बाद एम्बार में मान को तोड़ा। पूछा, "जग रहे हैं?" "आचार्यजी के विषय में बताऊँ ?" "हाँ।" एम्बार ने कहना शुरू किया। पथिक ने शुरू-शुरू में विशेष रुचि दिखायी, हाँ-. हूँ कहता रहा। एम्बार ने समझा कि उत्साह से सुन रहा है, उसका उत्साह दुगुना हो गया। गुरुजी का गुणगान करते समय वह सहस्रजिह आदिशेषनाग ही बन जाता। अब तो पूछना ही क्या! आचार्यजी का जीवन-चरित एक कलाकार को बताने का यह अवसर उसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रतीत हुआ था। बहुत उत्साह तो होना ही चाहिए। उसके कथन का रंग-ढंग, रसभावपूर्ण उसके ध्वनि-विन्यास की रीति, जीवन-चरित को अभिव्यक्त करने की शैली आदि बहुत आकर्षक बनकर रंग जमाते लग रहे थे। पथिक को लग रहा था रात-भर कहते जाएँ तो भी यह किस्सा खतम होनेवाला नहीं। फिर भी किस्सा चलता रहा। आचार्य के तप को रीति, उनका साधना मार्ग, सबसे बढ़कर उनका 156 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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