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________________ कर देना कोई साधारण बात नहीं थी। इसे चमत्कार न कहें तो और क्या कहें। ऐसे महात्मा खुद ही यादवपुरी में आये तो यही समझना चाहिए कि यह इस राज्य की प्रजा की प्रगति के लिए भावी शुभ-सूचना ही है। "नन्द से अपमानित चाणक्य की निष्ठा और बुद्धिमत्ता से चन्द्रगुप्त जैसे साम्राज्य के संस्थापक बने वैसे ही चोलराज से त्रस्त, अपमानित आचार्य की महिमा से हमारे महाराज भी अपने राज्य का विस्तार कर योय्यल-साम्राज्य की स्थापना करेंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं..." "ऐसा हो तो भविष्य में हमारे राज्य में आज से अधिक सुख-सम्पत्ति आसानी से सबको प्राप्त हो सकेगी।..." ___ "इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या हो सकता है? यह इन्द्रजाल है या मेले-बेले में होनेवाला जादू है? भगवान ही जाने।..." । "हमारे महाराज और पट्टमहादेवी आसानी से धोखे में पड़नेवाले नहीं।..." "फिर भी सुनने पर रोमांच होता है। दो हजार सोने की मुहरें! नदी के पास की तीन-सौ गुण्टे जमीन!..." "भिखमंगे को भाग्य-लक्ष्मी ने ही वर लिया।..." । "हाँ, हाँ, शायद उस संन्यासी की जन्मपत्री में शशिमंगल योग होगा। उसमें भी कुज उच्च रहकर चन्द्र स्वक्षेत्र में रहता होगा, दोनों उच्च वर्ग में अच्छे होंगे।..." "देखने पर तो बड़े तेजस्वी लगते हैं!" "ये वास्तव में सात्त्विक हैं या खाली सपोरशंख, कौन जाने?" "सचिव की बातें सुनने पर लगता है, ये सीधे बैकुण्ठ से ही उतर आये हैं।" "कौन जाने, किस-किस में कौन महत्त्व छिपा रहता है?" यो तरह-तरह की विचित्र बातें यादवपुरी की जनता और घर-घर में थोड़े ही समय में फैलने लगीं। आम जनता का यह स्वभाव ही होता है कि जो जी में आए कहे। चाहे लोगों के बोलने का ढंग और विचार कैसे भी रहे हों, इतना जरूर था कि लोग आचार्य को देखने और उनका दर्शन पाने के लिए विकल अवश्य थे। लोगों के मन में यों कुतूहल पैदा करने के लिए उच्चस्तरीय प्रचार-प्रसार बहुत ही मुख्य है। पिछले दिन जब आचार्यजी यादवपुरी में पधारे तब उनके धीर-गम्भीर व्यक्तित्व को देख लोग एकदम आकर्षित तो हुए परन्तु किसी ने उनके प्रति विशेष आसक्ति नहीं दिखायी थी। उनकी तेजस्विता को देख अन्दर-ही-अन्दर प्रभावित होने पर भी, केवल उन्हें एक निष्ठावान मानकर सब अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रह गये थे; अधिक जानने की कोशिश भी लोगों ने नहीं की थी। 146 :: पट्टमहादेन्त्री शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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