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________________ 11 आदरणीय पट्टमहादेवीजी भी इस विषय में सहमत हैं। इसलिए सन्निधान की आज्ञा के अनुसार निरूपित शासन को आप सबके समक्ष पढ़ता हूँ ।" इतना कहकर सचिव नागिदेवण्णा ने अपने पीछे तैयार खड़े लेखपाल को इशारा किया। उन्होंने एक शुभ्र और बिलस्त भर चौड़े काष्ठफलक पर घटित रेशम की डोरी से बँधे उस हस्तलिखित प्रालेख को अपने हाथ में ले झुककर आगे बढ़ाया। सचिव ने डोरी को खोलकर उसकी तह खोली । शुद्ध काषाय वर्ण के रेशमीवस्त्र पर मसिवज्रलेपित शासन की हस्तलिखित प्रति तैयार करायी गयी थी । नागदेवण्णा ने अपनी पदोचित अधिकार वाणी में उस शासन को पढ़ना शुरू किया- "ॐ स्वस्ति जयश्चाभ्युदयश्च स्वस्ति समस्त भवनाश्रय श्री पोय्सल वंश रत्नाकर सुधाकर महामण्डलेश्वर यादवकुलाम्बर - धुमणि सम्यक्त्वचूड़ामणि भुजबलप्रताप - चक्रवर्ती, भुजबल वीरगंजप्रताप चालुक्यमणि माण्डलिक चूड़ामणि के नाम से प्रसिद्ध अनून दानी लोकस्त श्रीमन्महाराज विनयादित्य प्रभुवर्यात्मजात्मज रविसूनु से सहस्त्र गुना अधिक दानगुण- प्रसिद्ध श्री महामण्डलेश्वर एरेयंग प्रभुवर्य - तनय, त्रिभुवनमल्ल- गण्डप्रचण्ड यादवपुरवराधीश श्री श्री बिट्टिग पोय्सलदेव के विजय राज्य के उत्तरोत्तराभिवृद्धि प्रवृद्ध होकर आचन्द्रार्क ताराम्बरावृत रहते समय --- तमिल देशवासी श्रीवैष्णव मत - सिद्धान्ती संन्यास- स्वीकारानन्तर श्री श्री रामानुजाचार्य नामांकित प्रख्यात तत्पूर्वाश्रम नाम इलेवालवाभिधान से कीर्ति ख्यात आचार्यवर्य की सेवा में समर्पित स्वस्ति श्री शालिवाहन शक वर्ष एक हजार सैंतीस अर्थात् श्री चालुक्य विक्रम शक वर्ष चालीस यानी श्रीमन् मन्मथ वर्ष चैत्र सुदी पंचमी रोहिणी के अन्तिम चरण में पोटसल ब्रिट्टिग का स्वेच्छापूर्वक लिखवाकर दिया हुआ दानपत्र यों हैसीमातीत धर्मक्षय हो रहे इन दिनों में श्रीमदाचार्यजी से अपरिमित लोकोपकार होने के साथ पुनः धर्म-संस्थापन कार्य सम्पन्न होने की बात को समझकर इस कार्य के लिए करणीय सेवाएँ बिना किसी रोक-रुकावट के सर्वदा सम्पन्न होती रहें, निवास प्रवास, उपयुक्त अर्चन आहारादि हो सके इसके लिए योग्य स्थान, धनबल आदि देना ठीक और आवश्यक समझकर - - यादवपुर के दक्षिण दिशा-भाग में राजवंश के स्वाम्य में स्थित अमराई से युक्त क्षेत्र के पूर्व में छोटी नदी, पश्चिम की ओर राजप्रासाद और दक्षिण-पश्चिम से उत्तरपूर्व के कोनों तक फैला हुआ क्षेत्र, दक्षिण से पूर्व की ओर जानेवाला राजमार्ग, दक्षिण में छोटा पोखरा- इस तरह सीमाओं से आवृत्त, त्रिकोणाकार, हरियाली से शोधित, पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन : 141
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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