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________________ } i चालुक्य राजा की कितनी पत्नियाँ हैं क्या तुम्हें मालूम नहीं ? उनमें तुम्हारी प्यारी चन्दलदेवी का कौन-सा स्थान है ? उन्होंने अपनी इच्छा से चालुक्य चक्रवर्ती विक्रमादित्य को माला पहनायी थी न ?" 44 'इस बात को जानते हुए कि अपने प्रेम का एक काँटा पहले से मौजूद है, थे स्त्रियाँ दूसरी स्त्री के पति से विवाह करती ही क्यों हैं ?" "वह स्त्री के स्वभाव की दुर्बलता का प्रतीक है। उसे 'अपने व्यक्तित्व के विकास से भी अधिक अपने को अमुक की पत्नी कहलाने में विशेष आसक्ति और तृप्ति' कहा जा सकता है।" PP " तो प्रभु को आपने वरण... ' "मैं उनकी धर्म पत्नी हूँ और पहली हूँ। प्रेम से वरण किया। मुझमें अन्य किसी भी तरह का लोभ नहीं रहा। मेरी बात छोड़ो। बताओ, तुमने छोटे अप्पा जी से क्यों विवाह किया । तुमकी मालूम था कि अप्पाजी सिंहासन पर बैठेगा। छोटे अप्पाजी का सिंहासन पर बैठना असम्भव था, तो भी तुमने वरण किया। क्यों ?" "सब स्त्रियाँ मेरी आपकी तरह नहीं होंगी, यही न?" "इसके लिए उत्तर की आवश्यकता है? दण्डनायिकाजी की बच्चियों का हाल तुम्हें मालूम नहीं ?" "उनकी बात अब नहीं होनी चाहिए। आपने बहुत बातचीत को अब आराम करें। कल फिर विचार करेंगे।" "कल क्यों अम्माजी, मुझे कोई थकावट नहीं। तुम लोगों के न आने के कारण चिन्तित थी और थकी भी थी यह सच है। दिल खोलकर बात करने के लिए मेरे साथ हेगड़तीजी को छोड़ और कौन है ? अब तुम सब लोग आ गये। मुझे नया उत्साह मिला हैं । कहने के लिए बहुत कुछ है। थक जाऊँ तो मैं आप ही चुप हो जाऊँगी। मुझमें बात करते रहने की ऐसी कोई आदत नहीं, यह तुम जानती ही हो। लेकिन अब मुझे रोको मत, मुझे जो कहना है उसे कह लेने दो ।" ८८ 'आप कुछ भी कहिए, मैं मना नहीं करती। महारानी पद्मलदेवी से सम्बन्धित कोई भी बात न कहें। वह एक भुला दिया गया कडुवा प्रसंग है 1 ज्यादा ही दुःख होगा, इसलिए मेरी विनती को मानें।" " मैं भी उनकी बात उठाना नहीं चाहती। मेरी यही आकांक्षा है कि ऐसी घटना राजमहल में फिर न होने पावे।" "ऐसी घटना के लिए मौका ही नहीं है।" "ऐसा मत कहो अम्माजी यों समझकर तुम अपने को धोखा मत दो। मेरी इच्छा है कि आजीवन तुम्हें कभी किसी तरह का दुःख न हो। मैं जो पूछती हूँ उसका सीधा और साफ-साफ उत्तर दो। कुछ भी छिपाना नहीं। " पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन : 15
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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