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________________ डर लगने की बात कही थी न । वह क्या है?" "सन्निधान का भर्यकर क्रोध।" "ओह ! यह दासी विवेचना, पूर्वापर ज्ञान कुछ भी नहीं जानती क्या? मेरा मन चिन्ताक्रान्त था। उस चिन्ता के भार को होते हुए सिर झुकाकर हम इधर आ रहे थे। हमारे दिमाग में राजकुमारी की चिन्ता के सिवा और कुछ नहीं रहा। जब मैं बहुत निकट था तो उसने जोर से घण्टी बजायी। मेरे हृदय पर एकदम घण्टी की आवाज धड़क गयी। दिल घबरा गया और आवार; त हो देसी सशा में गुस्सा किसे न आएगा? एक बार गुस्से से उसे ऊपर से नीचे तक देखाइतना ही।'' "सन्निधान ने केवल देखा ही। परन्तु, वह दृष्टि ही उस बेचारी के लिए भयंकर ज्वाला बन गयी। इसी से वह थर-थर काँपकर मूञ्छित हो गिर पड़ी। भय से एकदम फक हो गयो। आखिर है तो दासो, बेचारी ने अपना कर्तव्य निबाहा तो उसपर स्वामी को ऐसा गुस्सा करना चाहिए? इसलिए शायद कहते हैं गौरय्या पर गोली दागना।" "जिन्हें इतनी समझ न हो उन्हें राजमहल की नौकरी नहीं करनी चाहिए।" "राजमहलवालों में भी विवेचना नहीं-यह बात बेचारे दास-दासियों को मालूम भी कैसे हो?" "तो हम पर यह आरोप कि हममें भी विवेचनाशक्ति नहीं।' "सन्निधान को ही सोचकर निर्णय करना चाहिए । दासी राजमहल में घण्टी बजानेवाली है। सन्निधान के अन्तःपुर में आने की सूचना घण्टी बजाकर देने के लिए ही वह नियुक्त है। ऐसी कड़ी आज्ञा उसे दी गयी है। उसने कर्तव्य का पालन किया। सन्निधान हमेशा की तरह आये होते तो उसका कर्तव्य-पालन भारी अपराध-सा जो लगा वह तब अपराध न होता। किसी सूचना के बिना सन्निधान का आ जाना ही उसको घबराहट का कारण हुआ। उसे लगा कि ऐसे समय में कर्तव्य लोप हुआ तो क्यों? घबराहर के कारण सन्निधान के निकट पहुँचने पर भी दूसरा चारा न देख उसने घण्टी बजा दी। सूचना देना उसका कर्तव्य था। यह अन्तःपुर का नियम है और इसके लिए महाराज की स्वीकृति भी है। ऐसी हालत में सन्निधान ही..." "कहो देवी! क्यों रुक गयीं? सन्निधान ही उस दासी के स्थान पर होते तो वे क्या करते ? यही है न तुम्हारा प्रश्न ? हाँ, अब आँख खुली। बेचारी दासी का कोई अपराध नहीं था। हमें इस बात का आश्चर्य हो रहा है कि प्रत्येक छोटीछोटी बात को भी लेकर इतनी दूर तक सोचा करती हो। अपने दुःख के भार को दूसरों पर लादने की मनोवृत्ति हममें हो तभी इस तरह असमय क्रोध उपजता है। 13: :: पट्टमहादेवो शान्तल्ग : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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