SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धड़कन, उतार-चढ़ाव ही डर की गवाही दे रहे थे। "वचन देने के बाद उससे मुकरना नहीं चाहिए। इस समय मदद करने को सुबुद्धि उस अर्हन्त ने हमें जो दी है, इसके पीछे कोई कारण है। हम जो पुण्यकार्य करते हैं उससे हमारी भलाई होती है। हमारे सारे पुण्य कार्य हमारी राजकुमारी के लिए रक्षाकवच बने। वैद्यजी जब तक नहीं कहेंगे तब तक तुमको यहाँ से हिलना नहीं है। समझी?" शान्तला के मन में जो क्षणिक काठिन्य उत्पन्न हुआ था वह गायब हो गया था। एक तरह की मृदुता, अनुकम्पा और निःसहायता के भाव उनकी वाणी में घुल-मिल गये-से लग रहे थे। "सध्द, वैधजी को हिपाप्रती का ही सही पालन हो...इस ओर ध्यान दो। समझी? जक्की, रुद्रब्वे के कहे अनुसार तुमको करना होगा।" दोनों ने स्वीकृति--सूचक सिर हिलाया। शान्तलदेवी राजकुमारी के शयनकक्ष में वापस चली आयीं। तब तक बिट्टिदेव यहाँ पलंग पर जा बैठे थे। बिट्टिदेव ने पूछा, "देवी, उस घण्टी बजानेवाली को क्या हुआ था? अब कैसी है?" उन्होंने तुरन्त उत्तर नहीं दिया। परीक्षक दृष्टि से बिट्टिदेव की ओर देखा। लगा कि कुछ सोच रही हैं। थोड़ी देर बाद बोलों, “अब वह जाग्रत है। वास्तव में क्या हुआ था सो तो पण्डितजी से ही पूछकर जान सकेंगे। फिर भी उसकी उस मूर्छा के लिए भय एक जबरदस्त कारण है, इतना उसकी बातों से जाना जा सकता है।" "भय? अन्त:पुर के आवरण में? यह तो विचित्र बात है ! क्यों डर किस बात का? क्या हुआ था उसे ? किससे डर था?" "अब छोड़ भी दीजिए उसकी बात। सन्निधान जब आराम कर रहे थे तब सोमनाथ पण्डितजी आये थे। तमिलनाडु से जो आचार्य यहाँ आये हैं, आज उनके यहाँ उन्होंने मुकाम किया है..." शान्तलदेवी की बात पूरी नहीं हुई थी कि तभी जक्की के स्थान पर नियोजित सान्तव्वा ने आकर प्रणाम किया, और बोली, "कोई तमिलनाडु के हैं, सुना कि आचार्य हैं। मन्त्रीजी के साथ आकर बाहर बरामदे में दर्शन के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। सन्निधान की आज्ञा हो।" "....हमने स्वयं पहुँचने की बात कहला भेजी थी न! कोई हठीला ब्राह्मण मालूम पड़ता है।" बिट्टिदेव यों ही कह उठे। उनके कहने में कुछ असन्तोष का आभास मिल रहा था। तभी शान्तलदेवी ने, "वे स्वयं इस तरह जल्दी में, वह भी हमारे मन्त्री पट्टमहादेवी शान्तला : गलग तीन :: 125
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy