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________________ था। पुराणों में ऐसे विषयों के बारे में पढ़ा था तो भी उन सबसे अधिक भरतबाहुबली के चरित्र में अभिव्यक्त मानवीय सत्य उनके मन में गहरी जड़ जमा 'वुका था। उस बाहुबली की नग्नता में उन्होंने त्याग की महानता को पहचाना था। इसी नग्नता में उन्होंने भक्ति - श्रद्धा के सुन्दर रूप को देखा था। इसी नग्नता में अहंकार विमुक्त स्थिर मनस्कता की शक्ति का स्वरूप अनुभव किया था। इसी नग्नता में लौकिक दृष्टि से महान् माने जानेवाले सुख, सम्पदा, अधिकार, वैभव आदि को तृणसमान मानकर सबका त्याग कर मूर्तीभूत सम्यक्ज्ञान को देखा था। उसी नग्नता में ज्ञान के भव्यतम बृहत् स्वरूप को पहचाना था । लौकिक दृष्टि से केवल हेय मानी जानेवाली उस नग्नता में श्रेष्ठतम नित्यतृप्ति के स्वरूप का दर्शन किया था। इसी नग्नता में अट्टहासपूर्ण विजयश्री के अहंकार से युक्त हँसी के बदले त्यागमय निर्विकार मनोभाव से पूर्ण निष्कल्मष मदहास के समृद्ध शाश्वत आनन्द से परिपूर्ण तेज का अनुभव किया था। यह नग्नता अचल और स्थिर दिखने पर भी इसी में समस्त संचालक शक्तिकेन्द्र के अस्तित्व को पहचान चुकी थीं शान्तलदेवी । 1 इस तरह की अनुभूतियों के बीच ऐसे चमत्कारों की बातें शान्तलदेवी के दिमाग में उठ ही नहीं सकती थीं। केवल मानव बनकर मानव की तरह साधना करके. उसी तरह चलकर जीवन का आदर्श उपस्थित करनेवाले उस महामानव की भव्य मृति ने कभी कोई इस तरह का औतिक चमत्कार नहीं किया था। ऐसी हालत में ऐसे चमत्कारों पर विश्वास वह करें भी तो कैसे ? लेकिन इसके साथ ही शान्तलदेवी में एक सर्वप्रिय गुण यह भी था कि स्वयं विश्वास करें या न करें, दूसरों के विश्वास को छेड़ने बिगाड़ने की प्रवृत्ति उनमें नहीं थी। फिर भी न जाने क्यों, उसी चमत्कार के विषय में सोचती रहीं। दास जब दूध लेकर आयी तभी वह इस विचार से विमुख हुई। दूध पी रही थीं कि इतने में पास आकर दासवे ने कहा, "जक्की जाग गयी है, वह जिद कर रही हैं कि वहाँ नहीं सोएगी। सोच नहीं पा रही कि क्या करना चाहिए। आज्ञा हो।" आधा पीये हुए दूध के पात्र को वहीं रख शान्तलदेवी वहाँ से उठकर चली गयीं । दासव्वे को लगा कि उसने गलती की गलती तो हो चुकी थी, वह ठीक कैसे हो ? रुद्र जक्की को पकड़कर जोर से दबाये बैठी थी, उसे उठने न दे रही थी। शान्तलदेवी की अन्दर आते देख वह उठ खड़ी हुई। जक्की भी उठने का प्रयत्न कर रही थी, इसे देख अधिकार वाणी से शान्तलदेवी ने कहा, जक्की ! उठो मत, यह हमारी आज्ञा है। समझी ? " 44 'देखो जक्की, तुम्हारी तबीयत अच्छी नहीं। तुम अपने घर से राजमहल पट्टमहादेवी शान्त भाग तीन : 123 :
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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