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________________ गोंका ने यह बात रेविमय्या को बतायी। रेविमय्या ने बात सुन ली, मगर कुछ बोला नहीं। दोनों ने ही जैसे यह घटना भुला दी। पहले दिन उत्सब की सारी विधियों शास्त्रोक्त रीति से सम्पन्न हुई। दूसरे दिन दोपहर के समय बलिपुर से सिंपिमव्या आये। चालुक्य चक्रवर्ती के यहाँ से जो पत्र आया था, उन्होंने उसे अपने बहिनोई के हाथ में भोजन के बाद दिया। भोजन के उपरान्त एरेयंग प्रभु ने कहा, "कल्याण से चक्रवती जी नहीं आये और न उनकी तरफ से कोई सूचना झी मिली?" यह सुनकर हेग्गड़े मारसिंगय्या बोले, "अभी बलिपुर से हेग्गड़े आये हैं। यह लपेटा हुआ पत्र चक्रवर्ती की ओर से आया है।" कहकर उसे प्रभु के हाथ में देने के लिए आगे बढ़े। उस समय वहाँ इन दोनों के अलावा अकेला रेबिमय्या ही उपस्थित था। प्रभु एरेयंग ने कहा, "आप ही पदिर हेगड़ेजी, सारी विरुदावली आदि को छोड़कर पत्र का मुख्यांश भाव ही पढ़िए।'' पत्र का मुख्यांश यों था "आपको हमने भाई की तरह माना था। उसी आत्मीयता के कारण हमने अपना विरुद आपको प्रदान किया था। आपका सिंहासनारोहण होना उचित है। फिर भी पहले हमें सूचित करने के बाद यह व्यवस्था होती तो अच्छा लगता। आपने क्यों ऐसा किया यह मालूम नहीं हुआ। आपके सिंहासनारोहण का उत्सव सुखपूर्वक सम्पन्न होवे। एक बात हमें लाचार होकर बतानी पड़ रही है कि हमने आत्मीयतावश बलिपुर प्रान्त आपके मातहत किया था। अब उसे हम अपने वनवासी प्रान्त के अन्तर्गत कर रहे हैं। आप अपने हेगड़े को वापस बुलवा सकते हैं। हम आपके सिंहासनारोहण के इस शुभ अवसर पर उपस्थित नहीं हो सके, इसका हमें खेद है। इति, श्री विक्रमादित्य" __प्रभु एरेयंग ने कहा, "पत्र इधर दीजिए, हेगड़ेजी। पत्र में हस्ताक्षर और राजमुद्रा असली है या नहीं, क्योंकि चक्रवर्ती को ऐसा लिखने का कोई कारण नहीं।' उन्होंने पत्र लेकर देखा। बहुत देर तक वैसे ही बैठे देखते रहे। हेग्गड़े को कुछ सूझा नहीं कि क्या बोलें। वे मूर्तिवत् खड़े रहे। कुछ देर बाद पत्र को लौटाते हुए प्रभु ने कहा, "इस बात की अभी किसी से चर्चा मत कीजिएगा। हम चुपचाप इस पर विचार करेंगे। लगता है, इसमें किसी का हस्तक्षेप है। इसे गप्त ही रखें।" मारसिंगच्या पत्र हाथ में लिये वैसे ही खड़े रहे। "अब आप जाइए। बहुत देर तक मेरे साथ एकान्त में रहने पर हो सकता है, लोग कुछ और ही अर्थ लगाएँ ।"-प्रभु एरेयंग ने कहा। हेग्गड़े मारसिंगय्या 102 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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