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________________ गया था। पट्टाभिषेक के महान उत्सव ने उसे भी अपनी इच्छा को प्रस्तुत करने.. अपनी बेटी पाला को युवरानी बनाने के लिए प्रयास का अवसर दे दिया था। और यह तो निश्चय है ही कि युवरानी बनने के बाद वह महारानी बनेगी ही। इस तरह से उसने सोचकर देख लिया था कि इस बार उसकी इस चिर अभिलाषा के पूरा होने में किसी तरह की बाधा नहीं आएगी। सो, उसने पतिदेव से भी चर्चा कर दी। मगर उन्होंने फटकार दिया, "इस विचार को अब छोड़ेगी तो तुम्हें देश-निकाले का दण्ड दिया जाएगा ! अब केवल प्रभ का पट्टाभिषेक और राजकुमार बल्लालदेव का यौवराज्याभिषेक इन दोनों विषयों को छोड़कर अन्य किसी भी विषय पर बातचीत नहीं करनी है।" ___ "ठीक है, यह दोनों काम हो जाएँ तो मैं भी अपनी इच्छा पूरी करके ही रहूँगी। मैं कोई ऐरी-गैरी नहीं-- गंगराज की बहिन और महादण्डनायक की पत्नी चामब्बा हूँ।" मन-ही-मन उसने ठान लिया। उधर पट्टाभिषेक के प्रसंग ने बच्चों में मैत्री की भावना अधिक प्रगाढ़ कर दी धी। गुरुजन भी अपने को एक ही गुरुकुल के प्राध्यापक मानने लगे थे। प्रमाधि संवत आश्वयुज सुदी दशमी का दिन पट्टाभिषेक के लिए निश्चित करके सबको आमन्त्रण पत्र भी भेज दिये गये। दोरसमुद्र इन्द्र की अमरावती बनने लगा। सबकी जुबान पर एक ही चर्चा धी - पट्टाभिषेक। एरेयंग प्रभु का पट्टाभिषेक और बालालदेव का यौवराज्याभिषेक। लोगों में वही चर्चा होती-चालुक्य चक्रवती विक्रमादित्य आएंगे तथा पिरियरसी जी जाएंगी। प्रभु द्वारा पराजित किये गये बड़े-छोटे नरेश आदि अपनी-अपनी तरफ़ से भेंट आदि लेकर आएंगे। सारे देश के सभी बसदी, मन्दिरों तथा विहारों में महाराज, बुवराज और सारे राजपरिवार की कुशलता के लिए पूजा-अर्चा-अभिषेक आदि के साथ प्रार्थनाएँ होंगी। उस दिन समस्त सेना से अलंकृत नये महाराज और युवराज हाथी के हौदे में बैठेगे, राजपथों पर जुलूस निकलेगा। सूर्यास्त के बहुत पहले निकलेगा, फिर भी सभी राजपथों से होता हुआ राजमहल लौटने तक अँधेरा हो जाएगा। अतः हजारों मशालों के साथ जुलूस होगा। नये महाराज के सिंहासनारोहण समारम्भ की खुशी में राजधानी के सभी मन्दिरों में लाख-लाख दीप जगमगा उठेंगे। राजमहल के प्राचीर के चारों ओर कतारों में दीपमालाएं सजायी जाएँगी। इस तरह की ब्यवस्थाओं के बारे में जिसे जो सूझता वैसी ही चर्चा आपस में छेड़ देता। ये सब बातें राज्य के कोने-कोने में फैल गयीं। इससे यह अन्दाज हो गया था कि राजधानी के इर्द-गिर्द के प्रदेशों और गाँवों से इस आनन्दोत्सव में भाग लेने के लिए लाखों लोग राजधानी पहुंचेंगे। जगह-जगह पर उनके ठहरने, पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 95
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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