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________________ "अच्छा!" कहकर शान्तला उठ खड़ी हुई और नाट्याचार्य महापात्र को प्रणाम . कर बोली, "अब मुझे आज्ञा दें, माँ प्रतीक्षा करती होंगी। फिर आपको अध्यापन में भी तो देरी हो रही है।" फिर उन बहिनों से बोली, "अच्छा, अब चलती हूँ. आप लोग समय निकालकर जरूर आएँ। मेरा यहाँ और किसी से परिचय नहीं है । सहेलियाँ न होने के कारण मन ऊबने लगता है । " बालिकाओं ने अपनी स्वीकृति दे दी। शान्सला वहाँ से चली गयी। पढ़ाई शुरू हो गयी। बेटी के आते हीं हेग्गड़ती माचिकब्बे उठ खड़ी हुई और बोली- अच्छा दण्डनायिका जी, चलती हूँ। और हाँ, यहाँ हमारे कोई परिचित नहीं हैं। अतः आप सबकी हम पर दृष्टि बनी रहनी चाहिए।" tusafeका ने गड़ती को हल्दी -रोड़ी (रोली) तथा पान का बीड़ा देकर विदा करते हुए कहा- "अच्छा हेग्गड़ती जी, यहाँ भी उसी तरह मिल-जुलकर रहें जैसे राजमहल में रहा करती हैं। किसी तरह के संकोच की जरूरत नहीं। कभी-कभी आगी रहे। वो भी रहें। वे ऊब जाती होगी।" मां-बेटी दोनों पालकी में बैठकर जाने ही वाली थीं कि देखा, दण्डनायक जी प्रांगण तक आ चुके हैं। हेग्गड़ती पालकी से उतरीं तो बेटी ने भी माँ का अनुसरण किया । दण्डनायक घोड़े से उतरे और सीधे उन लोगों के पास आये। बोले, " हेग्गड़ेजी ने राजमहल में बताया था कि आप लोग हमारे यहाँ गयी हैं। सब कुशल हैं न? बिटिया काफी बड़ी हो गयी है !" 1 "सब कुशल हैं। आज्ञा हो तो फिर कभी आएंगे।" माचिकब्वं ने कहा । "अच्छा, " कहकर मरियाने अन्दर चले गये। इधर मॉ बेटी भी अपने घर आ पहुँचीं। चर्चा के समय अगर टण्डनायिका यह सवाल कर बैठती कि लड़की के लिए वर निश्चित हो गया या नहीं? तो पता नहीं माचिकच्चे क्या उत्तर देती । भला हो उस दण्डनायिका का कि उसने पूछा नहीं। शायद जवाब में हेग्गड़ती भी सवाल कर बैठती, 'और आपकी बेटी की शादी कब हो रही है ?" तो दण्डनायिका भला क्या उत्तर देती? इसलिए उसने नहीं पूछा होगा। यह रहस्य बेचारी पाचिकये क्या समझे 1 हेगड़े परिवार के दोरसमुद्र में आकर बसने के बाद से युवराज के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया था। उनके पाँच के घाव भर चुके थे। अब वे स्वयं चलफिर सकते थे। उनके मन से अब यह भय भी निकल गया था कि वह दुबारा खुला आकाश, चाँद व सूरज नहीं देख पाएँगे। स्वयं मन्त्रालय जाकर वह राजकाज सम्बन्धी मन्त्रणाएँ भी करने लगे थे । उधर युवरानी एचलदेवी, दुःख के कारण जिनका मुँह म्लान पड़ गया था, फिर पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो : 93
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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