SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'हाँ, एक तरह से युवरानी जी का कहना ठीक है। परन्तु निम्न स्तर पर . रहनेवाले अगर किसी दुराभाव से बेवकूफ़ी करें तो उसे भी सहना होगा? 'वह बेवकूफ़ी यदि दुराभाव के कारण की गयी है, तो तब तक संयम बनाये रखना चाहिए कि जब तक वह दुराभाव साबित न हो जाय। इसी में बड़प्पन है। अपने दृष्टिकोण से दूसरों के आचरण को नमक-मिर्च लगाकर देखना तो निरी मूर्खता होगी। फिर सम्भ्रान्त व्यक्तियों में तो इस तरह की मूर्खता की गन्ध तक नहीं होनी चाहिए। ठीक कहती हूँ न?' ___ किसी ने युवरानी जी के मन को अपने आचरण से दुःख पहुंचाया है क्या? कौन हैं व-यदि बता सकें तो...।' _ छिः छिः, ऐसा कुछ नहीं। मनुष्य के जीवन में ऐसी बहुत-सी घटनाएं हो जागा काती हैं। यों ही बैठे. लाले, पता नहीं किन्नी ही बातें पन में आती रहती हैं। और इस बीच कोई बातचीत करनेवाला मिल जाय तो वे बातें खुद-ब-खुद बाहर निकल आती हैं। इसलिए इन सब बातों को एक लौकिक व्यवहार की रीति ही समझना चाहिए, दण्डनायिका जी।' बात वहीं रुक गयी। मैं मौन हो रही। युवरानी जी भी मौन हो गयीं। कुछेक क्षण चों ही बैठी रहकर, मैंने कहा- 'अब तक इधर-उधर की बातें हुई। आने का आदेश था, आयी। बुलावा किसलिए था, यह अब तक मालूम नहीं पड़ा। __ 'कोई ख़ास बात नहीं। बहुत दिन से देखा नहीं था। बलिपुर से हमारे लौटने के बाद राजमहल में किसी से इधर-उधर की बातें करते-करते आपकी बड़ी लड़की की शादी युवराज के लौटते ही कराने की बात सुनाई दी थी। आये इतने दिन बीत गये तो भी उस बारे में कोई खबर नहीं मिली। यही समाचार सुनने-जानने की इच्छा थी।' युवरानी ने कहा। ___'प्रभु जब तक पूर्णरूप से नीरोग नहीं हो जाते, हमारी कोई विशेष बात उनसे निवेदन करना उचित नहीं होगा। मैंन और दण्डनायक जी ने यही निर्णय लिया है। मैंने बड़े उत्साह से कहा। ___ 'युवराज के नीरोग होने तक लोग अपने-अपने कार्य चों क्यों रोक रखें: ऐसा सोचना टीक नहीं है। आप विवाह उत्सव सम्पन्न करें। युवरानी जी बोली। 'हम इसो स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं खुशी से फूल उटी। 'इसमें हमारी स्वीकृति की भला क्या जरूरत, दण्डनायिका जी: वधू-वर को आशीर्वाद देना हमारा कर्तव्य है, सो इसका निर्वाह हम अवश्य करेंगे।' युवरानी जी ने कहा। मुझे उनसे इस तरह के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी। यह सुनकर मैं तो सन्न रह गयी। फिर भी मैंने इतना ही कहा, 'पालिक से कहूँगी।' और इस तरह बात 76 :: पट्टपहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy