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________________ चामला ने व्यंग्य किया। "सींग हैं या नहीं, अपनी दीदी से पूछ लो ।" उसे यह सब कहाँ मालूम है न दीदी कन्धे को हिलाते हुए उस पर अपना हाथ रख दिया। बहिन का हाथ परे सरकाकर पद्मला बाली, "सुपको तो बस तमाशा सूझा है। राजकुमार शतरंज खेलना चाहते हैं तो तुमने गप लड़ाना क्यों शुरू कर दिया ? चुप भी रहो।" " आप सब लोग आएँगे तभी तो शतरंज का खेल हो सकेगा ।" बिट्टिदेव बोला । "हमें जाना होगा?" चामला ने पूछा । " आपको आना होगा, आपकी दीदी को भी और आपकी बहिन को भी।" "बीपि को खेलना नहीं आता ?" चामला ने कहा । बिट्टिदेव बोला । कहकर उसने बहिन के "जीते हुए गोटे लेनेवाला भी तो कोई होना चाहिए। चलिए, आइए ।” – कहकर सभी को साथ ले अपने प्रकोष्ठ की ओर चल पड़ा। "यदि हमें किसी ने बुला भेजा तो?" पद्मला ने पूछा 1 "मां के पास ख़बर भेज दी जाएगी कि आप लोग यहाँ हैं ।" "हम ही वहाँ चली जाएँ तो?" "नहीं, ऐसा होता तो आपको यहाँ नहीं बुला लाता। वे किसी राजकार्य की जब बात कर रहे होते हैं तो बच्चों को वहाँ नहीं रहने देते। आइए, आइए।" दण्डनायक जी की बेटियाँ और उदयादित्य उनके साथ उसी प्रकोष्ठ की ओर चल दिये । इधर युवराज के साथ दण्डनायक की और वहाँ युवरानी के साथ दण्डनायिका चाब्बे की बातें होती रहीं । घर लौटने पर पद्मला की जैसे किसी विषय में कोई दिलचस्पी ही नहीं रह गयी । उसका वह उत्साह भरा मन राजमहल से लौटने के बाद निराशा और उदासीनता में डूबकर पंख टूटे पंछी जैसा छटपटा रहा था। वह एकान्त चाहती थी । राजमहल में उपाहार अधिक हो गया बहाना कर वह शाम के भोजन के वक़्त भी सबके साथ नहीं मिली । युद्धभूमि से लौटे बल्लाल में उसने कुछ परिवर्तन देखा था। एक नयापन रूपित होने के लिए शायद वह सब आवश्यक रहा हो। परन्तु इस परिवर्तन के बावजूद उसके प्रति प्रेम में कमी होने की सम्भावना अब तक उसे नहीं लगती रही। बल्लाल का मिलना-जुलना अधिक न होने पर भी पद्यला को 70 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग क्षे
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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