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"दण्डनायिका जी की इच्छा के विरुद्ध अड़चन पैदा करनेवाले कौन हैं?". "मुझे मालूम नहीं।" 'चोकी ने नहीं बताया?" "उसे भी मालूम नहीं है।" ''तुमने जानने का प्रयत्न किया होगा?"
"प्रयत्न तो किया। अगर मालूम हो गया होता तो मुझे दण्डनायिका जी से अधिक लाभ मिल सकता था। न उन्होंने बताया, न कहीं और से मालूम हो सका। मतलब यह कि उनके निकटवर्ती किसी परिवार को भी इस बात की जानकारी नहीं है।"
"तो बात यह है कि तुमने उनके यहाँ के अन्य नौकर-चाकरों से भी इस सम्बन्ध में जानकारी एकत्र करने की कोशिश की " ___“कोशिश तो की, मगर सीधे उनसे नहीं। चोकी ही के जरिए। परन्तु उससे किसी विशेष बात का पता नहीं लग सका।'
"दण्टनायक के घर के नौकरों में से चोकी के अलावा और कोई तुमसे उपकृत नहीं हुआ?"
"ये जब तक स्वयं हमारे पास न आ, तय तक हम कैसे उनका उपकार कर सकते हैं?"
तुमने अभी बताया कि दण्डनायक जी ने कहा कि कुछ नहीं दिखा। क्या सचमुच उन्हें कुछ नहीं दिखा"
यह मैं कैसे बताऊँ? उन्होंने कहा कि कुछ नहीं दिख रहा है। उनकी बात पर विश्वास करना चाहिए। परन्तु दण्डनायिका जी ने जो देखा वह उन्हें अच्छा नहीं जंचा। दण्इनायक जी को भी शायट वैसा लगा हो, इसलिए ऐसा कहा हो लो आश्चर्य नहीं।" पण्डित ने कहा।
"तो तुम्हारा मतलब यह कि सभी को अंजन में एक जैसा ही दिखता हैं, है न?"
"वहाँ तो एक जैसा ही दिखता है। परन्तु कुछ लोगों को शायद उतना भी नहीं दिखता।"
"क्यों नहीं दिखता?"
"उसके सम्बन्ध में पहले से कोई भावना नहीं बनी होती, कुछ लोगों में। इसलिए ऐसे लोगों को नहीं दिखता।"
"तो जिसे पूर्वाग्रह हो उसे ही दिखता है। वही न?"
"ऐसी पूर्वाग्रह पीड़ा न हो तो हमारे पास व आएंगे हो क्यों, प्रधानजी: उन्हें जो सपाधान चाहिए, वह हमारे इस अंजन से मिल जाता है। उनकी भावना को
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 6!