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________________ श्री देवी के चरणारविन्दों में निवेदन करने का निश्चय हुआ। राजपरिवार, माचिकले, भासिंगय्या, बम्मलदेवी, राजलदेवी - सभी जन वहाँ चलेंगे ऐसा विचार हुआ। व्यवस्था के कार्य पर रेविमय्या को नियोजित किया गया। F पट्टाभिषिक्त होने के बाद, मात्र एक बार महाराज बल्लाल सोसेकरु गये थे फिर दस-बारह साल तक राजघराने से कोई भी वहाँ नहीं गया था। इसलिए इस अवसर पर वहाँ का राजसौध नये सिरे से परिष्कृत किया गया। सारी नगरी आनन्दोत्साह से दूर रही थी। रेविमय्या की निगरानी में व्यवस्था होने के कारण, सारा काम बहुत ही अच्छे ढंग से किया गया था। पुरानी अनेक स्मृतियाँ भी तब ताजी हो आयीं। एक दिन महामातृश्री ने अपने विश्रान्ति कक्ष में बम्मलदेवी और राजनदेवी को बिठाकर उन पुरानी बातों को विस्तार से बताया। अपनी प्यारी और वर्तमान पट्टमहादेवी बनी बहू उस समय अधिकार लालसाग्रस्त लोगों की किस तरह असूया का कारण बनी, कैसे-कैसे उनकी भर्त्सना का पात्र बनी आदि सभी बातें उन्होंने विस्तार से बतायीं। जब वे इन सब पुरानी बातों को कह रही थीं उस समय उनके कथन में किसी प्रकार की कड़वाहट की गन्ध तक नहीं थी। अपने पारिवारिक जीवन में असन्तोष फैलानेवाली चामब्बे के विषय में भी कोई कड़वी बात उनके मुँह से नहीं निकली। "अनजान में किये पाप के लिए पछताती हुई वह बेचारी दण्डनायिका कुछ साधे बिना ही सुरलोक सिधार गयीं। बच्चों के हित की आकांक्षा से उन्होंने जो कुछ किया वह इन बच्चों के ही जीवन के सर्वनाश का कारण जा बना। पूर्वजन्म के पापशेष के कारण हमें भी अपार दुःख झेलना पड़ा है। पाप से शायद पुण्य का अंश अधिक रहा, इसलिए अब अर्हन् ने मन को शान्ति प्रदान की हैं। आज तक हमारी पट्टमहादेवी सबके लिए अम्माजी ही रही। उसने अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा। उसके पाँ-बाप ने भी कुछ नहीं चाहा। अच्छे मानव के अनुरूप एक आदर्श जीवन का उन्होंने निर्वाह किया है। आज भी ये उसी आदर्श पर चल रहे हैं। अपनी बेटी को भी उन्होंने अपने उसी सात्त्विक मार्ग में पाला, प्रवृद्ध किया । अम्माजी ने जिस योग्यता का अर्जन किया उसी के अनुरूप फल भी भगवान की कृपा से उसे मिला। उसके उदार व्यवहार के ही कारण मेरे बड़े बेटे का जीवन सार्थक बन सका था। वह हमें छोड़कर जल्दी ही चल बसा, इस एक बात को छोड़ अन्य सभी बातों में वह माँ-बाप के लिए एक योग्य और आदर्श पुत्र बनकर ही रहा। ऐसी सात्त्विक देवी की मदद के होते हुए भी, उधर एक माँ की गर्भ-संजाता बहिनें अधिकार के मद में मौतों की तरह झगड़ती हुई अपना सम्पूर्ण जीवन ही बरबाद कर बैठीं। निष्कल्मष उदार हृदय और सदैव परोपकार की अभिलाषा रखनेवाली हमारी इस पट्टमहादेवी शान्तला का इस संसार में जो भी बुरा 452 पट्टमहादेवी शान्तला भाग से -------
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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