________________
आ गयीं।" कहते हुए मारसिंगय्या द्वार की तरफ बढ़े।
दोनों उठ खड़ी हुई। माचिकच्चे भी आँचल से हाथ पोंछती हुई वहीं आ गयीं।
पट्टमहादेवी शान्तलदेवी अन्दर आयीं। उनके पीछे चट्टलदेवी हाथ में परात लिए वहाँ आयी। अन्दर आते ही माता-पिता के चरण छूकर पट्टमहादेवी ने प्रणाम किया और माँ से कहा, ''माँ बैठिए।" उन्हें एक गलीचे पर बैठाया और फिर चट्टला से कहा, "परात इधर लाओ।"
चट्टला ने परात को वहाँ रखकर उस पर ढक रेशम के वस्त्र को उयादा । परात से सोने का कुंकमदान लेकर, माँ को सिन्दूर और मंगलद्रव्य देकर, पीताम्बर और कंचुक माँ के आँचल में भरकर पुनः प्रणाम किया। कहा, “माँ, आशीर्वाद दें कि आपकी यह बेटी मायके और ससुराल की लाज रख सके, दोनों घरों की कीर्ति को सँजोये रख सके। मैं जहाँ रहूँ वहाँ शान्ति विराजे ऐसा बरतती रहूँ।"
माचिकब्बे ने बेटी के सिर पर दायाँ हाथ रखा और फिर पीठ सहलाकर कहा, "उठो अम्माजी।"
शान्तलदेवी उठ खड़ी हुई। अपने पिता को देखने के इरादे से बग़ल की ओर मुड़ीं।
वहाँ दो अपरिचित स्त्रियों दिखाई पड़ी। दोनों ने देखते ही हाथ जोड़कर प्रणाम किया। शान्तलदेवी ने भी हाथ जोड़कर प्रत्यभिवादन किया और पूछा, "पिताजी : तो ये सवारनायक अनन्तपाल के साथ जो आयी हैं वे ही...''
"हाँ, पहमहादेवी से मिलने की इच्छा से आयी हैं और इसके लिए मदद करने को माँग लेकर तुम्हारी माँ के पास आयी हैं।" मारसिंगय्या बोल्ने ।
“मैं खुद ही आ गयी, अब माँ का काम आसान हो गया न"
'मेरा काम आसान हो गया कहो। तुम्हारी माँ ने यह काम मुझे सौंप दिया था।" ___ "छोड़ो, अच्छा हुआ। सन्निधान की आज्ञा के अनुसार, इन्हें राजमहल में बुलवाकर बातचीत करनी पड़ती। अनायास यहीं मिलने से दोनों का कार्य वन गया। अच्छा पाँ, यह बताया क्यों नहीं कि आज आपकी वर्षगाँट है?
“ढलती उम्र में यह वर्षगांठ? वास्तव में उस तरफ़ मेरा ध्यान ही नहीं गया।"
'कोंगाल्व, चर देश की तरफ से युद्ध की सूचना के आने से अभी एक पखवारे से वही काम चल पड़ा है। अन्य किसी और ध्यान ही नहीं रहा। विहिगा की पीट धोकर असीसने के लिए उसकी बड़ी दीदी शान्ति आवी थी। इससे
1. कर्नाटक में यह रीति परम्परा से चली आयी है कि नागपंचमी के दिन बहिन भाइयों की शुभ कामना
करती हुई दूध से उनकी पीट धोती हैं और छोरों को असीसती और बड़ों को प्रणाम कर आशीष लेती हैं। यह सबको सरख-शान्ति कं लिा मंगलकामना का एक संकेत हैं।
114 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो