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________________ चाहिए। यदि कोई ऐसे सिक्के तैयार करते पाये जाएँगे तो उन्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा- इस बात की घोषणा लोगों की जानकारी के लिए कर देनी होगी।" यिट्टिदेव ने समर्थन करते हुए कहा । गंगराज ने कहा, "जो आज्ञा।' और बताया, "फ़सल की कटौती पर, उसका एक तिहाई राजादाय के रूप में लेने की बात घोषित करेंगे तो इसे प्रजा द्वारा स्वीकार कर पाना शायद कुछ क्लिष्टतर काम होगा।" "राष्ट्रहित की बात समझा-नाकर देने के लिह होगा. हा मानेनने की सम्पत्ति को हम छीन तो नहीं रहे हैं। अधिक हिस्सा उन्हीं के लिए छोड देने हैं। अब हम जो धोड़ा-ज्यादा माँग रहे हैं, उसे व्यापार व्यवहार में लगाने पर राष्ट्र की ही आय बढ़ेगी। इस व्यापार-व्यवहार से थोक व्यापारी लाभान्वित होंगे। और विक्रीकर आदि से अधिक धन खजाने में जमा भी हो सकेगा। इसको सड़ने के लिए हम भरकर तो नहीं रखते हैं। और फिर, हम उसे लोगों को ही तो दे देते हैं। सम्पत्ति एक जगह जमा रहेगी तो वह सड़ने लगती है। उसका उपयोग एक हाथ से दूसरे हाथ में बदलते रहने में ही है। और इस तरह बदलते रहने से वह सबमें बँट भी जाती है। इसी अर्थ में हम लक्ष्मी को चंचल कहते हैं। परन्तु हम इस तस्व से परिचित नहीं हो पाये। लक्ष्मी का एक ही जगह स्थायी रहना अच्छा नहीं। बह चंचल रहे तभी राष्ट्र को सम्पन्न बनने में सहायता मिलती हैं। हमें अब उसकी वहीं चंचलता चाहिए। शान्तलदेवी ने कहा। फेहरिश्त तैयार करने का आदेश खजांची को दिया गया और टकसाल के अधिकारी को बुलाकर भिन्न-भिन्न मुल्च के अलग-अलग तौल के सिक्कं टलवाने का निर्णय भी किया गया। पाचण दण्डनाथ ने सलाह दी, 'पोसलों के गज तथा अश्व बल को बढ़ाना चाहिए। हाथियों की कतार सामने रहती है तो पीछे रहनेवाली धनुर्धारी सेना के लिए वह एक किला बन जाती है। ढाल-तलवार वाले सैनिकों के येरे से यह व्यवस्था हमारी शक्ति को बढ़ाकर बलवान बना देगी। अच्छे घोड़ों को अरद्ध राष्ट्र से मंगवा लेंगे तो अच्छा होगा। बैग और शक्ति में हमारे स्थानीय घोड़ों से वे ज़्यादा अच्छे होते हैं। उनकी संख्या को बढ़ा देने से हमारी भाले-बर्डीवाली सेना की भी शक्ति बढ़ जाएगी।" शान्तलदेवी ने सलाह दी, "घोड़ों को पंगवाने के लिए एक अलग व्यक्ति को नियुक्त करना ठीक होगा। घोड़ों की परीक्षा करके उनम घोड़ों को ही खरीदना अच्छा है। राष्ट्र के बाहर से खरीदना हो तो हमारी सम्पत्ति अन्य बाहरी देशों को चली जाएगी। इसलिए हमारा ध्यान इस बात की ओर भी रहना चाहिए कि हमारी प्रत्येक कौड़ी का सही ढंग से व्यय हो।" पदमहादची शान्तला ' भाग दो :: 109
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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