________________
षड्यन्त्र रचकर, रानी बनने पर भी उस पद का धोड़ा-सा भी सुखानुभव किये बिना रह सकती है। उस भगवान ने जो अनुग्रह किया उसी को परमपवित्र मानकर विचलित हुए बिना जीवन को बिताना होगा। इस तत्त्व की जिज्ञासा एचलदेवी के मन में होने लगी।
बल्लाल को मृत्यु पर सवन शोक मनाया फिर धीरज और सन्तोष के साथ सबने विट्टिदेव के पट्टाभिषेक समारम्भ में भी भाग लिया।
इसी बीच मन्त्री पोचिमण्या, सन्धिविग्रही नागिदेव दिवंगत हो गये थे। इनके बाद सुरिगे नागिदेवपणा और पुनीसमय्या मन्त्री बना दिये गये थे। पट्टाभिषेक के कुछ दिन बाद मन्त्रणा करके बिट्टिदेव ने यह निर्णय लिया कि राजधानी को दोरसमुद्र से वेलापुरी ले जाया जाए। उनका विचार था कि प्रभु और अण्णाजी दोनों के लिए दोरसमुद्र शुभकर नहीं हुआ। उन्हीं पुरानी बातों का स्मरण करके खिन्न होते रहना अच्छा नहीं। अलावा इसके, महाराज की मृत्यु का समाचार बाहर के लोगों को मालूम हो जाने पर पता नहीं कौन-कौन हम पर आक्रमण करने का उद्यम करने लगेंगे! हमें अब अपनी सैनिक-शक्ति को बढ़ाना होगा, इसके लिए योजना बनानी होगी। राष्ट्र की सीमाओं का रक्षण ही नहीं, गुण्डागिरी को दबाकर वहाँ अपने शार्दूल लांछन को फहराना होगा। दोरसमुद्र में रहें तो न जाने क्या-क्या पूर्व-स्मृतियों आती रहेंगी, उस हालत में हमारे इन विचारों में सकावट भी आ सकती है। वेलापुरी को राजधानी बनाने पर नये वातावरण में नयी दृष्टि भी प्राप्त हो सकेगी। इसलिए राजधानी को स्थानान्तरित करने की बात निर्णीत हुई। निर्णय के तुरन्त बाद स्थानान्तरित करने का कार्य जल्दी शुरू हो गया। माचण दण्वनाथ दोरसमुद्र में ही ठहरे। डाकरस को वेलापुरी में, नागिदेवण्णा को यादवपुरी में रखने का भी निर्णय लिया गया। शेष सब को वेलापुरी चलने का निर्देश था।
राजधानी के परिवर्तन के बाद आगे के कार्यक्रमों के विषय में आमूलाग्र विचार-विमर्श किया गया। अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाना, जिधर से शत्रुओं के आक्रमण का डर है उधर रक्षण-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना आदि सभी बातों पर विचार हुआ। __ महाराज बल्लाल को निगलनेवाला खर संवत्सर बीत गया और नन्दन संवत्सर का प्रवेश हुआ। पट्टमहादेवी शान्तलदेवी ने इसी नन्दन संवत्सर की वसन्त ऋतु में एक पुत्ररत्न को जन्म दिया।
एचलदेवी और माचिकब्बे दोनों बेलापुरी में ही रही, इसलिए शान्तलदेवी के पट्टमहादेवी बनने के बाद इस पुत्र जन्म-उत्सव को बड़े सम्भ्रम के साथ शास्त्रीय विधि-विधानों के अनुसार मनाया गया। उनका बड़ा बेटा कुमार बल्लाल, कुमारी हरिवलदेवी, छोटे बिट्टिदेय अब पट्टमहादेवी के संजात कहलाये, लोगों की दृष्टि में ।
390 :: पट्टमहादेवी शान्तता : भाग दो