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________________ ही रहे तो अच्छा। फिर पति-पत्नी-बेटी इतने ही भर तो नहीं आएंगे, उस लड़की के गुरुजन और उनके परिवारों को भी ता आना पड़ेगा।" ___ “अपना घरबार छोड़कर वे सब भला क्यों आएँगे?" 'क्यों, आएँगे क्यों नहीं: गजमहल का आकर्षण किसे नहीं होगा। आनेवाले तो आएँगे ही, उस-बीस जन और भी आ गये तो दोरसमुद्र के लिए कोई बोझ नहीं बढ़ जाएगा। इसलिए दोरसमुद्र के ईशान के कोने में जो वह बड़ा निवास-गृह है, जिसके बड़े अहाते में तीन-चार छोटे मकान भी हैं वह पूरे हेग्गई परिवार के लिए सब तरह से सुविधाजनक रहेगा।" "परन्तु वह राजमहल से तो बहुत दूर है !" "तो क्या। हेगड़े तो चलकर नहीं आगंगे न। घोड़ा तो रहेगा ही।" "पता नहीं युवराज क्या कहेंगे? मोचना होगा।'' "ऐसा है तो एक काम कर सकते हैं। मेरे विचार से उस मकान को तैयार रखें और उनकं आते ही उन्हें वहीं उतारें। "यहाँ सब तरह की सुविधाएँ हैं, इसलिए इस स्थान को हमने चुना है। यूँ राजमहल के पास भी दो छोटे निवास हैं, जो खाली रखे गये हैं। हमारा विचार है कि वे आपके लिए अपर्याप्त है। अगर आप चाहें तो वहाँ 'मी रह सकते हैं।' यों कहकर उन्हीं पर निवास को चुन लेन की जिम्मेदारी डाल दें।" . "देखेंगे, तुम्हारे भाई से भी विचार-विमर्श करूंगा। तुम्हारे कहने के दंग से ऐसा लगता है कि हेग्गड़े का परिवार गजमहमल से दूर रहे तो अच्छा, यही तुम्हारी राय है। ठीक है न?" "मालिक कितने होशियार हैं।'' "अब इस बात में तुम्हारे मालिक की होशियारी नहीं चलेंगी। सब-काछ युवराज की इच्छा के अनुसार ही होगा।" ''हमारी बेटियों के विवाह होने तक ही झुककर ही चलना होगा।' "हमें ऐसे भी चलना होगा जिससे किसी को दुःख न हो। इस बात को जोर देकर बार-बार तुमसे मुझे कहना पड़ रहा है। हेग्गड़े के परिवार से तुम्हें अधिक मेल-जोल नहीं रखना है। तुम्हारी व्यंग्यवृत्ति तुम्हारे न चाहते हुए भी तुम पर हावी हो जाती है। इसलिए तुम्हें बहुत सावधान रहना होगा। फिर कभी उस वामशक्ति पण्डित के यहाँ नहीं जाना होगा। उससे भी सावधान रहें। तुम्हारे भाई ने यह व्यवस्था कर रखी है कि उसके चाल-चलन पर और उसके यहाँ आने-जाने वालों पर नजर रखी जाए। उसके बारे में उनकी अच्छी राय नहीं है।'' ___ सुनते ही दण्डनायिका की छाती धक-धक करने लगी। वह सोचने लगी, "शायद उसके यहां मेरे जाने की खबर भाई को लग गयी। अब क्या होगा!" 42 :: पट्टमहादेची शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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