SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "इस विषय में हमारे निर्णय को कौन पूल्य देगा? आपके कथन से इस बात की सूचना मिलती है कि ये पट्टमहादेवी के निवास से दूर रहें तो कुशल है। फिर भी, यह विषय बहुत पेचीदा है।" बिट्टिदेव ने कहा। "विषय पेचीदा है समझकर उदासीन हो जाएँ तो परिणाम भयंकर भी हो सकता है। मुझे लगता है कि महाराज को स्थानान्तरित करना उत्तम है। उनके मन को सान्चना दें और नसों को उद्दीप्त न होने दें, ऐसी परिस्थिति में उनका रहना तथा आवश्यक उपचार करना, उनके लिए आवश्यक है। महामातृश्री का प्रेमपूर्ण पालन ही उनके लिए पर्याप्त होगा। यह मेरी राय है। परन्तु रानियों से दूर रहने की बात कहनेवाला मैं कौन होता हूँ: यदि रानियों यों सवाल कर बैठे लो मैं क्या उत्तर दे सकूँगा? इसके लिए मेरे पास कोई जवाब नहीं। इतना कह सकता हूँ कि इसके सिवाय महाराज की रक्षा करने का दूसरा कोई उपाय नहीं है।" चारुकीर्ति पण्डित ने कहा। सबसे अधिक मुख्य विषय महाराज का स्वास्थ्य हैं। इसलिए यह निर्णय किया गया कि केवल महाराज और महामातृश्री ही पण्डितजी के साथ वेलापुरी जाकर रहें। इराकी पूर्व-तैयारियां होने लगा। पर निज मा किया गया कि बेलापुरी के लिए रवाना होने तक इस बात को गुप्त ही रखा जाए, केवल रवाना होते समय ही कहा जाए। इसलिए यह वात न महाराज को मालूम थी, न ही रानियां को। महामानुत्री ही उन लोगों से कहें, इसका भी निर्णय किया गया था। इसके अनुसार यात्रा पर निकतने के दिन दोपहर के भोजन के पश्चात, महामातृश्री एचलदेवी ने महाराज को और रानियों को अपने अन्तःपुर में बुला लिया। सबको बैठाकर बताया, ''महाराज का स्वास्थ्य सर्वोपरि है। इस विषय पर पण्डितजी को बुलवाकर मैंने पूछताछ की है। उनकी राय में जलवायु बदलना महाराज के लिए इस वक्त बहुत आवश्यक है। इसलिए मैं और अप्पाजी दोनों ने वेलापूरी जाने का निर्णय किया है। अप्पाजी, मैंने तुमसे इसपर विचार-विमर्श नहीं किया. इससे तुम हैरान न होओ, और तुम लोग भी परेशान न होओ।' बल्लाल ने कुछ नहीं कहा। योप्पदेवी बोली, "सन्निधान की स्वास्थ्य-रक्षा के लिए जो भी करना होगा सो सब करना ही उचित है। हमसे पूछा नहीं, इसलिए हम परेशान क्यों हो? जन्म देनेवाली माँ को सन्निधान के विषय में चिन्ता रखना सहज ही है।" ___चामलदेवी ने कहा, "सन्निधान का स्वास्थ्य ही हमारे जीवन के लिए प्रकाश देनेवाला है। उनका स्वास्थ्य जिस तरह से हो, सुधरना ही चाहिए। इसके लिए जो भी करना हो, करना ही होगा। पण्डितजी ने भी कहा है कि वातावरण और पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 385
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy