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________________ के साथ रानी का स्वागत किया गया। उनकी अनुपस्थिति में यहाँ जो ग़ज़री थी इससे अनजान रानी लोप्यदेवी को सन्लोप हुआ ही। बच्ची को दूध पिलाती रानी से एक बार मरियाने ने कहा था कि महाराज का स्वास्थ्य बिगड़ गया था, पर अब अच्छे हैं। यह दात यादवपरो में ही उन्होंने सुनायी थी। उस समय बोप्पदेवी ने बच्ची को लाती से लगाकर कहा था. ''बेटी, तम पर दो बार आरोप लगाया गया था कि तुम पिता का अहित करनेवाली हो; भगवान ने तुमको इस आरोप से बचा लिया है। वहीं पेरी कोख का सौभाग्य है ।" फिर बच्ची को चुम्मा देकर खुश हो उटी थी। उसी खुशी में राजमहल में उसने प्रवेश किया था। देहरी पर आरती उतारकर उसे अन्दर बुला लिया गया था। अपने बेटे की ही शक्ल-सुरत लिये नवजान राजकुमारी की एचलदेवी ने अपनी गोद में लेकर चूमा और आशीर्वाद दिया। ''सुखी रही येदी, अज्ञातावस्था में रहनेवाली तुमने राजमहाल में उथल-पुथल मचा रखी थी लेकिन आज खुशी के फव्वारे छूटे हैं। तुम्हारी उपस्थिति से आज राजमहल जगमगा उठा है।'' स्त्रियां की सारी मांगलिक क्रियाग समाप्त हुई, तब रानी बोप्पदेवी बच्ची के साथ महाराज के पास पहुँची। उन्होंने हँसते हा उसका स्वागत किया। वह अपनी ही आँखों पर विश्वास न कर सकी। उसे लगा कि इतना कमजोर होना हो तो यह वीमाग भी कैसी रही होगी। फिर भी उसने जल्दबाजी नहीं की। 'यह सन्निधान का अनुग्रह है।'' कहती हुई बल्लाल के हाथों में बच्ची को दे दिया। उन्होंने बच्ची को लेकर चुप्मा दिया। फिर कुशल-क्षेम के बाद उन्होंने कहा, 'यात्रा से यकी होगी धाव जाकर आग़म करो।" बोपदेवी ने पूछा, "सन्निधान को इतना कमजोर बनानेवाली ऐसी भयंकर वोमागे क्या थी?' 'सव आराम से बताऊँगा। अब तो सब ठीक हो गया है न: अव तुम ज़्यादा अपने को थकाओ मत । जाओ, आराम करो।' बल्नाल ने कहा। बच्ची को उनके हाथ से लेकर वह अपने प्रकोष्ठ की ओर चली गयी। राजमहल का जीवन एक तरह से किसी तरह के लथल-पुथल के बिना चलने लगा था। शायद यही कारण है कि सब कम बोलते थे। बल्लाल महाराज को पूर्ववत् शक्तिशाली बनने के लिए काफ़ी समय लग सकता हैं, वही चासकीर्ति पण्डित ने कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि कम-से-कम एक साल तक वे स्त्री-सम्पर्क न करें। शरीर के दुर्बल होने की वजह से महाराज किसी भी काम में विशेष उत्साह नहीं दिखाते थे। इसलिए सब अपने-अपने कामों में लगे रहे, यो महना शायद ग़लत न होगा। दिन गुजरते गये। महाराज अधिक समय विश्रान्ति में ही व्यतीत कर रहे थे, पट्टमहादेवी शान्तला : पाग दो :: 3417
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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