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________________ दी निराशा, दर्द और एक समाधान की भावना तीनों उसकी बातों में सम्मिलित-सी प्रतीत हुईं। वह इस बात को अधिक बढ़ाना नहीं चाहते थे इसलिए चुप हो गये। फिर चोप्पी ने ही पिता से बातें शुरू कीं, "पिताजी, लड़कियाँ प्रथम प्रसव के लिए मायके जाया करती हैं। मुझे क्या वह सौभाग्य भी नहीं मिलेगा?" “मैं सिन्दगेरे में अकेला हूँ। नौकर-नौकरानी बगैरह तो हैं परन्तु रानी वनी तुमको वहाँ इस वक्त रखना उचित नहीं । यहाँ तुम्हारे बड़े भाई का भी घर है। राजधानी में ही रहकर राजमहल से इसके लिए अन्यत्र रहना युक्तिसंगत नहीं । अब बच्चा यादवपुरी में तुम्हारे दूसरे भाई का घर। मुझे तो तुम्हारी इस तरह की इच्छा का होना अनुचित नहीं लगता, इसलिए अगर तुम वहां जाने की बात मान लो तो मैं स्वयं सन्निधान से अनुमति लेकर साथ चलूँगा। वहाँ अब कोई राजा भी नहीं। राजमहल के अहाते में ही तुम्हारे भाई का सौंध है इसलिए सब ठीक हो सकता है।" मरियाने ने बताया । थोड़ी देर सोचकर बांप्पदेवी ने कहा, "वही कीजिए, पिताजी " परिमाने ने महाराज के समक्ष बात छड़ी बल्लाल ने कहा, "सोचकर बताऊंगा।" फिर उन्होंने अपनी मां से और विट्टिदेव एवं शान्तलदेवी से भी सलाह लेकर अपनी सहमति दे दी I एक अच्छे मुहूर्त के दिन नरम गद्दियों से सजी सुन्दर गाड़ी में कुसुम जैसी कोमल चोप्पदेवी को यादवपुरी में बड़ी सावधानी से पहुँचा दिया गया। बोपदेवी के चले जाने के दो-तीन दिन बाद एक दिन बल्लाल मध्याहन के भोजन के पश्चात् पट्टमहादेवी पद्मलदेवी के साथ उनके प्रकोष्ट में गये। वहीं पान खाते हुए कुछ इधर-उधर की वालों में लग गये। इसी सिलसिले में उन्होंने पूछा, " पति के घर पर सब तरह की सहूलियतें रहने पर भी प्रथम प्रसव के लिए मायके जाने की इच्छा क्यों किया करती हैं? शायद स्त्रियों की यहीं रीति मालूम पड़ती हैं ?" ओह, सन्निधान बोपदेवी की ही बात को ध्यान में रखकर सवाल कर रहे होंगे। वह मायके के प्रति प्रीति की बात नहीं, राजमहल के निर्णय का प्रभाव है।" पद्मलदेवी ने कहा । "इसके माने?" "माने स्पष्ट हैं। निर्णय के विषय में असन्तुष्टि । लड़के का जन्म हुआ तो भी उसे सिंहासन पर बैठने का अधिकार नहीं रहेगा, इसी के कारण क्रीध है।" "न, न, जब उसने पूछा, 'सन्निधान हैरान तो नहीं होंगे, परेशानी तो न होगी न उस समय उसकी आँखों में दीनता का भाव झलक रहा था उसे तब देखना महादेवी शान्तला भाग दो : 350
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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