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________________ ध्यान लगा रहता है, उन्हीं की चिन्ता बनी रहती है। आक्रमण पर एकाग्न मन नहीं रहता। इस कारण आपका न जाना ही अच्छा जी। 'क्या तुमने मुझे बूढ़ी नानी समझ लिया? मुझे मेरे पिता ने सम्पूर्ण योद्धा वनने की शिक्षा दिलायी हैं। एक बार एक घटना हुई, तुम्हें बताती हूँ, सुनो। एक बार राजा (निदेव) और में वीच तलवार चलाने की स्पर्धा हुई। यह हमारी पगेक्षा की बात थी। उस समय की बलिपुर में घटी सभी बातों का विस्तार के साथ विवरण देकर पहामातृश्री ने जो वादा करा लिया था सो सब बतला दिया शान्तलदेवी ने। ''तो तब से महामातृश्री अपने मन में आपका ख़याल रखती आ रही थीं।" "उन जैसी विशाल हृदय कहाँ मिलेंगी चट्टला ? यही मुझे लगता है कि अच्छा सुआ जो इस वक्त वे यहां नहीं रहीं। उन्हें ऐसी टेढ़ी खोटी बातें, चुगलखोरों की बातें सुनना, जिद करना आदि बिलकुल पसन्द नहीं। मैं धन्य हूँ कि मैंने उनका लेह पाया । मेरे माता-पिता का भी यही ख्याल है कि वे भी उनकी प्रीति का पात्र बन सकें। मैं रोज भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूँ कि वे अपनी तीर्थयात्रा से जितनी जल्दी हो सके लौट आएँ।' ___"हेगड़ती जी भी तो साथ हैं, इसलिा कोई चिन्ता की बात नहीं।' चट्टलदेवी चोली। "चाहे कोई रहे वा न रहे, एक रेविमच्या साथ रहे, वहीं पर्याप्त है।" शान्तलदेवी ने कहा। "क्या बात है कि उन्हें उस पर इतना विश्वास है?" "ऐसे व्यक्ति का जन्म विरला ही होता है। यह राजमहल का सौभाग्य है कि ऐसा व्यक्ति सेवा करने के लिए प्राप्त हो गया है। उसे यहाँ के सभी के स्वभाव का परिचय है। सबकी इच्छा-अनिच्छाओं को समझला है। सबसे मिल-जुलकर रहने की बुद्धिमत्ता उसमें है। निःस्वार्थ सेवा करने में उसका अग्रगण्य स्थान है। वह और माताजी दोनों महामातृश्री के साथ रहने से उनकी यात्रा सुगम होगी और आराम से लौट आएँगी, यह मेरा दृढ़ विश्वास है।' शान्तलदेवी ने कहा। "क्या विश्वास, अम्माजी!" पूछते हुए मारसिंगय्या अन्दर आये। “महामातृश्री..." शान्तलदेवी कुछ कहना ही चाहती थीं कि इतने में मारसिंगव्या ने कहा, "ये आ गयीं।" इतना कहकर फिर बोले, "तुम्हें राजमहल भेजने के लिए आया हूँ, तुम्हारी माँ भी वहीं हैं; वह आज शाम तक ही यहाँ आ पाएँगी। तुम तुरन्त बिट्टिगा को साथ लेकर चलो। पालकी तैयार है। तुम्हारी सारी चीजें चट्टलदेवी सँभालकर ले आएगी।" मारसिंगय्या ने कहा। . "रेविमव्या..." 330 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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