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________________ "अभी सत्य कहने का तुम्हारा मन नहीं हुआ। इस स्त्री के आने के बाद इसके घर पर सिपाहियों का पहग रखा गया है। इसके साथ चार सिपाही जाग और यह प्रसव कराने के समय अपने साथ जो पेटी लेती जाती है, उस पेटी को इसी के हाथ दुलवा लाएँ। उस पेटी में ऐसी गुड़ की टिकियों कितनी हैं, उन्हें निकालकर यह अपने ही हाथ से सन्निधान को दिखाएँ।" शान्तलदेवी ने कहा। ___ अब इस दाई का मुँह फीका पड़ गया। "ह्यय' मैंने कैसी बेवकूफी की उन गुड़ की टिकियों को उठाकर! दूसरी पेटी में रख दिया होता तो अच्छा होता! अब तो किसी को धोखा दे नहीं सकती। हाय' अब तो फंस गयी!" यों अपने आप में कहती हुई प्रश्नार्थक दृष्टि से बाचम की ओर देखने लगी। __“हाँ, क्ताओ; पोय्सल रानी के गर्भपात कराने में तुम्हें क्यों यह अभिरुचि हुई ? ऐसा काम करने की प्रेरणा तुम्हें किसने दी: जिसने तुम्हें प्रेरित किया उसे भी क्या फायदा मिलेगा?" बल्लाल महाराज ने पूछा।। ''यह सथ मैं नहीं जानती। मैं वाचम के साथ रहती हूँ। उससे मुझे देह का सुख मिन्नता रहा हैं। वह जैसा कहे वैसा करना मात्र मेरा काम रहा हैं।'' दाई ने कहा। "उसके साथ तुम्हारा यह सह-जीवन कितने समय से है?" "छह-सात साल से।" "यह सम्बन्ध हुआ कैसे?'' ''मेरी शादी के बाद तीन-चार साल के अन्दर पनि मर गया। ससुगल बालों ने कुलच्छनी, पति को निगल जाने वाली कहकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया। उस हालत में छोटे गाँव में गुजर करना मुश्किल लगता था। गजधानी में कहीं कोई काम मिल जाय तो अच्छा होगा, बड़ा शहर है-वही सोचकर यहाँ चली आयी। अब यहाँ आयी तो एक दाई हालचब्बे से परिचय हुआ। काफी वृद्ध थी वह । उसी के पास मैंने काम सीखा। छोटी-पोटी बीमारियों के लिए दवा-दारू करना भी उसने सिखाया। बड़े-बड़े आदमियों के यहाँ वह जाया करती। उसके मरने के बाद उसका काम मुझे मिल गया। फिर भी अकेली रहकर जीना अखरता था। बाथम ने इस कमी को दूर कर दिया। उसके साथ रहने लगी तो इसने इस तरह के अनैतिक गर्भपात कराने को प्रेरणा दी और जबरदस्ती यह काम कराया। मैंने कहा कि ऐसा काम नहीं करना चाहिए। 'बड़े लोग कुछ असावधानी से यदि ऐसा काम कर बैठे तब हम छोटे लोग इस तरह मदद कर देंगे तो उनका गौरव बच जाएगा और उनकी हैसियत के प्रभाव से हमें फायदा भी मिलेगा' उसने यों लालच दिखाकर मुझसे यह कराया। हमारे गाँव में एक बुढ़िया थी, वह कहा करती थी, मशकारि पाषाण को गुड़ में मिलाकर खिलाने से गर्भपात हो जाता है। मैंने जिस किसी को 336 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग को
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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