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________________ इनकार न करके कहना कि अभी नहीं, थोड़े समय के बाद लूँगी, अपने पास रखवा लेना । हमें इस षड्यन्त्र का पता लग गया है इस बात की गन्ध तक किसी की न लगे, ऐसा व्यवहार करना होगा ।" -7 "दीदी, तुम कितना ही सिखाओ यह ठीक न होंगी। कुत्ते की पूँछ कुछ भी करें टेढ़ी ही रहेगी। मुझे पटरानी बनने की चाह नहीं। और तो और, महाराज की पत्नी बनने की भी इच्छा नहीं रही। मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मुझे अमुक व्यक्ति से ही शादी करनी होगी। कभी मेरी माँ कहा करती थी मैं तुमको राजमहल की बहू बनाऊँगी। उनकी इस बात से मुझमें कोई स्फूर्ति उत्पन्न नहीं हुई थी । मैं नहीं चाहती कि मैं रानी कहाऊँ । महाराज को मेरे पास आने की भी जरूरत नहीं। मेरी सन्तान मेरे लिए हो-यही पर्याप्त है। मैंने प्रथम गर्भ के कई उत्सव-समारोहों को ठखा है। परन्तु मेरे लिए यह बड़ा ही दुःखदायक लग रहा है। सुनती हूँ कि मेरे गर्भधारण के कारण ही वर्तमान युद्ध छिड़ा है, इसके पहले कोई बुद्ध छिड़ा ही नहीं था। राजमहल के वातावरण को देखने पर लगता है मानो मेरा जीवित रहना ही अनर्थ का कारण हो। मैं अपने गर्भस्थ शिशु की माँ बनूँगी या उसके लिए मृत्यु ही बनूँगी- - पता नहीं। क्षण-भर के लिए भी मन को शान्ति नहीं। कोई-न-कोई एक न एक बात कहते ही रहते हैं। सच कहती हूँ दीदी, तुम यहाँ हां, इसलिए साँस ले रही हूँ, नहीं तो यह कभी की रुक गयी होती।” कहती हुई उस बेचारी का गला रुंध गया। "तुम साधारण स्त्री नहीं, पोप्सल महाराज की पाणिगृहीना रानी हो। इस तरह अधीर होओगी तो काम नहीं चलेगा। धीरज से सामना करना होगा। ऐसे समय जितना और जैसा साहस दिखाओगी वैसा ही साहसी और वीर पुत्र जन्येगा ।" “दीदी, तुम्हारे कहे अनुसार हो जाय, यही काफ़ी है। तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगी।" "अभी तो मैंने जो कहा सो बाद रहे। महाराज के आ जाने पर सारे राजमहल का शुद्धिकरण हो जाएगा ।" य दिलासा दे आयी शान्तलदेवी । कुछ ही क्षणों में राजमहल में रानी बोप्पदेवी के अस्वस्थ रहने की ख़बर सर्वत्र फैल गयी। राजपरिवार के वैधजी एक दाई के साथ आये और नब्ज की परीक्षा की और बोले, "घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। दोनों सामान्य हैं। बहुत चिन्तित हो तो ऐसी दुर्बलता हो सकती है और कमज़ोरी भी आ सकती है। मेरे थैले में अभी देने लायक़ कोई दधा नहीं है। उसे इसी दाई के हाथ भिजवा दूँगा । अथवा कोई दास या दासी मेरे साथ आए तो पुड़िया भिजवा दूंगा। अगर आज्ञा हो तो मैं खुद आकर दबा दे आऊंगा।" पण्डितजी ने कहा । चारुकीर्ति पण्डित तो महाराज के साथ गये थे; उनके बदले अब भास्कर पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 42)
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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