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इस पायण को किसी भी कारण से आइन्दा मेरे पास आने की ज़रूरत नहीं। स्त्री के प्रति गौरव-बुद्धि न रखनेवाले इसकी सेवा की मुझे आवश्यकता नहीं। यह इधर खड़ा क्यों है? अप्पाजी इसे कहें कि यह यहाँ से जाए।" शान्तला ने कहा।
मारसिंगय्या ने अपनी बेटी को इस तरह निष्ठुर होकर बात करते कभी नहीं देखा था। एक तरह से वह हक्का-बक्का रह गये। मायण विश्वासपात्र व्यक्ति भी है, साथ-साथ उसे चट्टला के प्रति अनुकम्पा भी आयी थी। उसके पन में पुरानी बातें उभर आचीं तो वह कुछ जोश में आ गया-यही मारसिंगव्या ने सोचा। वे चिन्तित होने लगे कि क्या-से-क्या हो गया! इस प्रवृत्ति को अब और नहीं बढ़ने देना चाहिए-यह सोच मारसिंगय्या ने कहा, “मावण, खड़े रहने से क्या प्रयोजना रानीजी ने कह दिया तो बात खत्म हो गयी। जाओ, कर्तव्यच्युत मत होओ! अनावश्यक वाद-विवाद मत किया करी।''
"जो आज्ञा ।" कहकर मावण चल पड़ा।
"अनुमति हो तो मैं..." मारसिंगय्या कहने ही वाले थे कि इतने में शान्तलदेवी ने उन्हें रोक दिया और कहा, "हाँ, हाँ, समझ गयी। कहने की जरूरत नहीं। अप्पाजी, मैं जानती हूँ कि मायण एक विचित्र मनोवृत्ति का आदमी हैं। वह निष्ठावान है, विश्वासपात्र है-यह भी मैं जानती हूँ। उसे मैंने अब जो दवा दी वह उस पर अच्छा प्रभाव डालेगी। मुझे उस पर गुस्सा नहीं। उसका मुंह बन्द करने के लिए मुझे कठोर बननः का पहला न। उच्छ स्ट: । भूट बाला है। इस यात पर मुझे विश्वास नहीं होता। वह दूसरे पुरुष के साथ मौज्ञ उझती है-यह बात मैं मान ही नहीं सकती। वही उसके बारे में ऐसी बातें कहता फिरता है तो लोगों का मुँह बन्द कौन करे? अप्पाजी, आप ही कहें, निश्चित रूप से किसी की शीलभ्रष्टता का प्रमाण न मिले तब तक उस स्त्री को शीलभ्रष्टा नहीं कहना चाहिए। अपनी इच्छा से जो भ्रष्टशीला होगी उसे कोई कुछ भी कहे, उस पर उसका कोई असर होगा ही नहीं। परन्तु जो स्त्री शील को ही स्त्रीत्व की निधि मानकर चलती है उसके बारे में दुष्प्रचार हो तो उसका सामना कर सकने की दुर्बलता के कारण वह अन्दर-ही-अन्दर युलती रहेगी। अकारण ही पुरुष को स्त्री के मन को नहीं दुखाना चाहिए। है न पिताजी ?" - "जल्दबाजी में जो वह बक गया, वह दूसरों के कानों में न पड़े इसका ख़याल रखना है। अब मायण ही को किक्केरी भेजना है न' मारसिंगय्या ने पूछा।
"यह आज रात को आपके पास आएगा। कहेगा, 'रानीजी से कहकर मुझे ही भेजने की व्यवस्था कराएँ ।' तब कहिए, 'वह किसी भी हालत में हो, उस पर गुस्सा न करके उसे गौरव के साथ बुला लाओगे तो जाओ, नहीं तो मत जाओ। कुछ-का-कुछ हो जाय तो क्या होगा?' यों उसे समझाइए। बाद में जब वह मान
पट्टमहादेयी शान्तला : भाग दो :: 307