SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युवरानी जी के एकाएक प्रस्थान का कार्यक्रम बन जाने के कारण बलिपुर में कोई विदाई-समारोह आयोजित नहीं हो सका। लेकिन मन्दिर, वसति, विहारों में युवराज की कुशलता और युवरानी की सुखमय यात्रा की कामना करते हुए पूजा-अर्चा आदि की व्यवस्था की गयी थी। चात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए रास्ते में जगह-जगह रुकने और घोड़ों के बदलने आदि की व्यवस्था के लिए एक टोली पहले ही निकल चुकी थी। वर्तमान स्थिति में जितनी जल्दी हो सके उन्हें दोरसमुद्र पहुँचना ही था, इसलिए टीक ठीक व्यवस्था के लिए स्वयं हेग्गड़े मारसिंगय्या साथ निकले। रक्षा-दल की निगरानी करने के लिए मायण उनके साथ था। किसी तरह की औपचारिक वातों के लिए मौका ही नहीं मिल सका था, इसलिए एक-दूसरे के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ मौन भाव से ही की गयीं। युवरानी ने हेग्गड़ती को और हेग्गड़ती ने चुवसनी को विदा किया। दोनों की आत्मीयतापूर्ण प्रीति देखते ही बनती थी। शान्तला और बिट्टिदेव तथा रेविमय्या जऔर शान्तला को परस्पर विदाई भी एक अपूर्व आत्मीयता के साथ मान-ही मौन हुई। जो बात परस्पर सम्भाषण से भी असम्भव थी, इस मौन ने कह दिया था। बलिपुर से रवाना होकर राजपरिवार निश्चित समय से बहुत पहले ही दोरसमद्र पहुँच गया। आदेशानुसार उनके आगमन की कोई पूर्व सूचना नहीं दी गची धी। इसलिए राजमहल पहुँचने पर वहाँ किसी तरह के स्वागत-समारोह की व्यवस्था नहीं हो पाची। सो, दण्डनायिका भी सजधज के साथ अपनी बेटियों को लेकर उनके स्वागत के लिए वहाँ उपस्थित नहीं हो सकी। अवसर ही कहाँ मिला? फिर दण्डनाधिका को जो परेशानी हो सकती थी, उससे भी वह बच गयी। मन-ही-मन उसने महावीर स्वामी को बार-बार प्रणाम किया। वास्तव में वह इस बात से परेशान थी कि अब युवरानी को वह मुँह दिखाए तो कसे। उसके भाई ने कहा भी था, "तुम ऐसा बर्ताव करो जैसे कुछ हुआ ही नहीं। यदि खुद बात छेड़े तो साफ़ बता देना, टुग़व-छिपाय की ज़रूरत नहीं है। तुम स्वयं बास मत ठेड़ना।" परन्तु उसके भीतर तो आग जल रही थी। बात यहाँ तक बढ़ेगी उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने समझा था कि उसके सिवाय और इसे कोई नहीं जानता। अब उसे अहसास हो रहा था कि उसका ऐसा समझना ग़लत था। पदमहादेवी शान्तला : भाग दी :: 7
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy