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________________ "भगवान की बात कहीं पासे से बदली जा सकती है?" बोपदेवी बोली । - पास डाले गये। पलदेवी ने असम संख्या गिराधी। चामलदेवी ने भी असम संख्या गिरायी। शान्तलदेवी ने भी असम संख्या ही गिरायी। लेकिन बोपदेवी ने सम-संख्या गिरायी। छोटी रानी की अपनी इच्छा-लड़की । हम सबकी इच्छा-लड़का। छोटी रानी को छोड़ हम सबकी एक ही इच्छा रही।'' शान्तलदेवी ने कहा । तो बार यहीं हुई कि भगवान अभी कुछ बताना नहीं चाहते।" एचियक्का ने कहा। आगे खेल चला। मनचाही संख्या पासे से मिलने के कारण सबसे पहले बोप्पदेवी जीत गयी। उस दिन के खेल में अगर कोई हार गयी तो वह शान्तलदेवी ही थी। वास्तव में शान्तलदेवी गोट चलाने में अधिक होशियार नहीं थी। पद्मलदेवी ने कमा, "चाहकर खेलने बैठी बेचारी शान्तला । पर हार गयी।" शान्तलदवो मुस्कुरा दी। बोली, "मेरी हार में आप लोगों की जीत है। आप लोगों का मन से मैं अपनी ही जो मानती हूँ इसलिए आप लोगों की जीत मेरी हार के दुःख को दूर कर देगी, उसे भुला देगी। हमें अपने जीवन में भी इसी तत्व का अनुसरण करना चाहिए। यदि हम अपनी हार पर दःखी हों ता उसक फलस्वरूप हममें ईप्यां पैदा होगी। धीरे-धीरे यही ईष्या सब दुःखों की जड़ बन जाती है। दूसरों की विजय से हमें आनन्द का अनुभव होने लग जाए तो यहाँ ईर्ष्या के लिए स्थान ही नहीं रहेगा। ईर्ष्या न होगी तो दुःख भी न होगा। मेरी इस हार से मझे कोई दुःख नहीं है।' तब तक शाम हो चली थी। शान्तलदेवो उठ खड़ी हुई और पटरानी से बोली, "अब आज्ञा दें, फिर दर्शन के लिए आऊँगी।" "वहीं ठहर जाती तो अच्छा होता।' पद्मलदेवी ने कहा। “घर पर पिताजी अकेले हैं, इसलिए वहीं पिताजी के साथ रहने के लिए राजा से अनुपति ले आयी थी। फिर भी पटरानी जी का यही आदेश हो कि मैं यहीं रहूँ तो उस आदेश का पालन करूँगी। पिताजी से कहकर आ जाऊँगी।" शान्तलदेवी ने कहा। __ "हाँ तो. हेग्गड़ती जी तीर्थयात्रा करने गयी हैं। हेग्गड़ेजी के सुख-सन्तोष के लिए हम क्यों बाधक बनें। कभी-कभी आ जाया करो।' पद्मलदेवी ने कहा। ___ "जैसी आपकी आज्ञा ।'' कहकर शान्तलदेवी राजमहल से चल पड़ी। एक ही दिन में शान्तलदेवी को मालूम हो चुका था कि रानियों में आपस में मेल-जोल नहीं है। जुदा-जुदा घरों में जन्म लेकर एक ही व्यक्ति के साथ विवाह करें तो सबका एक मन होना कठिन हो सकता है। लेकिन एक ही माता-पिता 302 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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