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देखरेख का दायित्व बुलुगा और दासब्बे पर ही छोड़ दिया गया।
विवाह समारोह के कके समाप्त होने के बाद दोपहर के जन्त सब लोग अन्तःपुर के मुखमण्डप में एकत्रित हुए । यहाँ सबका अर्थ सीमित जनों से ही है। श्रीदेवी, नवदम्पती, एचलदेवी, हेगड़े दम्पती, सिगिमय्या और उनकी पत्नी रानियों सहित महाराज बल्लाल, उदयादित्य छोटे चलिकेनायक और उनका परिवार, प्रधान गंगराज, मरियाने दण्डनायक - ये ही सब एकत्रित हुए थे। बम्मले, रेविमय्या, दासब्बे भी थे। विवाह के समय अन्य छोटे-मोटे काम सँभालने के लिए चट्टला को बुला लाया गया था। उसे बिट्टिगा की देखभाल में लगा दिया गया था। श्रीदेवी के साथ गालब्बे और लेंक तो आये ही थे। श्रीदेवी की एक दृष्टि सब पर पड़ गयी थी। तभी उन्हें नायक की पत्नी और बच्चे भी दिख गये थे। वहाँ जितने जन उपस्थित रहे सब के सब एक न एक तरह से श्रीदेवी से परिचित ही थे। वे जानती थीं, कि उपस्थितों में कोई ऐसे नहीं, जो कथित विषय जो भी रहे, उसे गुप्त ही रखेंगे। इन सब परिचितों में बही एक स्त्री, जो बच्चे को लिये हुए थी, श्रीदेवी के लिए अपरिचित जान पड़ी। वह यह चहला थी। उसके रहने से कोई हर्ज नहीं, मानकर ही उसे रहने दिया होगा - यह निश्चय होने पर भी श्रीदेवी ने पूछ ही लिया कि वह कौन है?
शान्तला ने इस चट्टला के सारे वृत्तान्त को बहुत रसीले ढंग से बताया।
यह सुनकर श्रीदेवी कहने लगी, “इसका वृत्तान्त तो बड़ा रोचक है। यह कितनी त्यागमयी और साहसिक नारी है! यहाँ के लोगों की निष्ठा और उस निष्ठा का वैविध्य ही मेरी समझ से परे है। ऐसी निष्ठावाले राज्य के मित्र होकर सहजीवन यापन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ। राज करनेवाले राजाओं का मन जाने किस-किस के वश में हो जाता है, और कब क्या कर बैठते हैं, कुछ पता नहीं चलता। किन्हीं विचित्र परिस्थितियों के कारण, चक्रवर्ती पोय्सलों के विरोधी बन बैठे हैं। मैं यह नहीं कहती कि वह ठीक है। ऐसी भावना रखना ठीक नहीं। निष्ठावान प्रजाजन के संबर्धन में इस राज्य के बुजुर्गों की निष्ठा सर्वोपरि रही है। उस पर सन्देह करना उचित नहीं। उनका स्नेह हमारे लिए रक्षा कवच है । बलिपुर प्रान्त को पहले जैसा उन्हीं के अधीन करके और उन्हीं को उसकी देखभाल का कार्य सौंपकर मैत्री को बनाये रखने के लिए मैंने कई बार मिन्नतें की। आखिर मैं स्त्री ही तो ठहरी। मेरी बातों का क्या मूल्या उत्तर में वे बोले, ' दो-चार दिन अच्छी तरह तुम्हारी देखभाल की इसलिए तुम समझ बैठीं कि वे दूध के धुले और स्वर्ग से उतरे हैं। सियासी हालचाल की ये बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएँगी। तुम्हें इन बातों में दखल नहीं देना चाहिए। हमारी रीति-नीति तुम्हें अच्छी नहीं लगती हो तो तुम वहीं जाकर रहो।' जब मेरी बातों का कोई मूल्य
पट्टमहादेवी शान्सला भाग दो 279