SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न हो तब तक वह इस काम में आगे बढ़े भी तो कैसे? शान्तला ने पद्यला से . सीधा सवाल किया, "आपकी आशा को सफल बनाने के लिए हमने प्रयत्न किया वह तो सार्थक हुआ। आपको भी पोसल महारानी बनाने की आशा थी। आपकी माँ भी चाहती थीं। यह सकती हैं। महाराज ना सहन ही प पदा है, उसे सफल बनने का रास्ता मिल गया। अगर आप यह चाहेंगी कि महाराज का प्रेम आप तक ही सीमित रहे तो आपकी बहिनों की कल क्या दशा होगी? अगर उन्हीं से उनको विवाह करना पड़े तब अपने पति के प्रेप को अपनी बहिनों के साथ बाँटकर सन्तोष से रहने के लिए आपको म्वीकृति देनी होगी। उन दोनों की स्वीकृति आपके सुख-सन्तोष में बाधक नहीं होगी-इस बात पर भी आपको सहमत होना होगा। इस बारे में आपकी राय बिलकुल स्पाट होनी चाहिए। यह विश्वास हो जाय तो मैं फिर इस सम्बन्ध में उनसे बातचीत कर लूँगी..." शान्तला ने कहा। "हमारी माँ होती तो क्या होता, कौन जाने ? महामातथी माता से भी श्रेष्ठमाता बन सकेंगी। इसलिए मेरी माता ने आखिरी वक्त कहा था कि 'येटियों को आपकी गोद में डाल दिया है। मैं अपनी बहिनों के सुख के रास्ते में काँटा नहीं बनूँगो। पाणिग्रहण करनेवाले का प्रेम पाना उनका काम हैं। महागज के व्यवहार पर हम सबका जीवन अवलम्बित है। मैं बड़ी होने के कारण मातृहीना अपनी बहिनों की माँ बनकर रह सकती हूँ, सौत बनकर नहीं-इतना आश्वासन दे सकती हूँ।" पद्मला ने कहा। पद्मला के साथ ही दोनों बहिनों को बिठाकर शान्तला ने प्रस्तुत प्रसंग की पृष्ठभूमि में युक्ति-युक्त बातें समझाकर बताया, “आपकी माता की अन्तिम आशा को चरितार्थ करने के लिए महामातृश्री और आप सबके लिए एक ही मार्ग रह जाता है। अपनी दीदी सहित दोनों को महाराज से विवाह करना होगा। सोचकर देखो। दण्डनायक जी बृद्ध हो गये हैं। दण्डनायिका जी की मृत्यु के बाद बहुत कमज़ोर भी हो गये हैं। आप सबके बिवाह जन तक नहीं हो जाते, चे अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकेंगे। विवाह प्रत्येक के जीवन में भाग्य की बात है। भाग्य अच्छा रहा तो विवाह सुखकर होगा। नहीं तो वह दुःख का एक पुलिन्दा है। करुणामयी क्षमाशीला महामातृश्री की बहू बनना भी बड़े भाग्य की बात है। . आप सभी बहिनें महाराज से विवाह करेंगी। और सौत न बनकर बहिनों की ही तरह महाराज के जीवन को सुखमय और सन्तोषप्रद बना सकती हैं। महाराज दूसरों से विवाहित होंगे तो उन रानियों से आपकी दीदी को वह प्रेम और आदर शायद नहीं मिलेगा जो आप लोगों से मिल सकता है। आप लोग सोचकर निर्णय कर लें।" शान्तला ने कहा। 262 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy