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________________ "तुम्हारा काम तो बन गया न: अब यह सब क्यों?" "बिना किये रह नहीं सकता। जो शक्ति मेरी वशर्तिनी है, उसे अन्यत्र काम करने नहीं लगाऊँ तो वह मुझे ही खा जाएगी। उसे काम देना ही था। पोय्सल राज्य में मेरे लिए जगह नहीं रही। यहाँ की गतिविधियों का थोड़ा-बहुत परिचय तो हो हो गया था। इस चौकी से मदद मिल सकने की सम्भावना भी थी। इसलिए मैं इसे भी साथ लेकर पट्टिगोंबुच्चपुर गया। वहाँ मुझे आसानी से राजाश्रय भी प्राप्त हो गया। “अव उतनी ही आसानी से राजकोप भी तुमको मिलेगा।" बल्लाल ने कहा। ___ "उससे मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। मैंने जो किया है वही मेरी शक्ति की गवाही दे रहा है। मेरा विरोध करके आप लोग तकलीफ़ में फंसने को तैयार नहीं हो सकतं-यह मैं जानता हूँ।" ___“अपनी शक्ति की डींग मत मारो। डींग मारना केवल टोंग है-यह हमें मालूम है। तुम जो भी कहो, हम इस बात पर विश्वास नहीं रखते कि तुममें मारने या मरने से बचाने की शक्ति है। कमजोर मनवालों को जाल में फंसाकर, उन्हें वश में करके, युक्ति से गुप्तचरी का काम करना मात्र तुम्हारा काम है, यह हम अच्छी तरह समझ गये हैं।' बल्लाल ने कहा। __वामाचारी कहकहा लगाकर हंस दिया। बोला, "आपकी सूझ का कोई जवाब नहीं।" विट्टिदेव ने आदेश दिया, “उस औरत को बुला लाओ।' दो सिपाही चट्टला को ले आये। ''तुम इस औरत को जानते हो?" ''हाँ।" "कहाँ, कैसे?" "इस चोकी के द्वारा । उसने इसे एक घर में रखा था। मेरी इच्छानुसार इसने कई रातें मेरे साथ बितायी हैं।" "इस पर भी तुमने अपने वशीकरण का प्रयोग किया?" "अपनी शक्ति का उपयोग अपने लिए करने पर वह नाश हो जाती है, इसलिए स्वार्थ के लिए हम किसी स्त्री पर वशीकरण मन्त्र नहीं चलाते।" "तो फिर यह तुम्हारे वश में कैसे आयी?" ''वह सब पूर्व-नियोजित है। वह चोकी की व्यवस्था है। उसके हाथ में यह अकेली ही नहीं, और भी कई स्त्रियाँ थीं।" "तुम जैसा कि लिए तुमसे ही भस्म पाकर यह वश में कर लेता था?" "वशीकरण से जो वश में आती हैं वह स्त्री उस अकेले की वशवर्तिनी बनती पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 24:
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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