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________________ जल्दबाजी के निर्णय से बंधे रहना ही होगा। ठीक है न?" "जब विचार गलत मजूम हो तब उसे हो जाता है। इसे बदलने के लिए भी स्पष्ट और निश्चित कारण होना चाहिए। एक बार Posts के घर पर इनके यहाँ की शिक्षिका ने जो बात कही थी, वह याद आ रही हैं। एक दिन 'शाकुन्तलम् पढ़ा रही थीं, प्रसंग दुष्यन्त की विस्मृति का था । गौतमी की संरक्षकता में शकुन्तला जायी तो दुष्यन्त ने उन्हें नहीं पहचाना था । इसे पढ़ाते समय शिक्षिका ने बताया था कि पूर्ण गर्भिणी के साथ ऐसा अन्याय नहीं होना चाहिए था । तब दण्डनायक जी की बेटी ने कहा कि शायद सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं। तब शिक्षिका ने समझाया था कि किसी पुरुष द्वारा परिस्थिति विशेष में किया गया आचरण सभी पुरुषों का आचरण मान लेना उचित नहीं । यहाँ प्रारम्भ में जल्दबाजी कर प्रेम करना और बाद में ऐसा व्यवहार करना कि परिचय हो नहीं, दोनों बातें स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध के ही बारे में हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जल्दबाजी के प्रेम में ऐसी सन्दिग्धता उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए प्रेम के विषय में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए- यह इस पहलू की मुख्य बात हैं। सन्दिग्धता उत्पन्न होने पर भी अधीर न होकर दृढविश्वास रखें कि अन्त में प्रेम सार्थक हो, यह इस पहलू की दूसरी मुख्य बात है। प्रेम का शीघ्र उत्पन्न हो जाना जितना सत्य है, उसे उतना ही सुदृढ़ बनाना भी भारतीय रीति है। शिक्षिका ने ऐसा ही समझाया था ।” “छोटे अप्पाजी, तुम दूसरों की दृष्टि से विचार कर रहे हो। मेरी जगह यदि तुम होते तो क्या कहते ? " ' “अब मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वह सब सन्निधान के हित की दृष्टि से इसकी सचाई का पता लगाने के लिए मैं जी प्रयत्न करता हूँ उसमें मदद देने की कृपा करें और अनुमति देने का अनुग्रह करें। सच्ची बात सामने आ जाए तो इससे सम्बन्धित सात-आठ लोगों के अलावा पोप्सल राज्य की भी भलाई होगी।" "छोटे अप्पाजी, हमें मालूम है कि तुम्हारे प्रयास से कौन-सा सत्य सामने आएगा। फिर भी तुमको निराशा न हो, इसलिए अनुमति देते हैं।" महाराज बल्लाल ने कहा । "सन्निधान ने उस वामाचारी को देखा था, जिसे देश निकाले का दण्ड दिया गया?" "हाँ ।” “जगदेव के साथ युद्ध में जिन लोगों की गिरफ़्तार किया गया था, उन्हें सन्निधान ने देखा है ?" "एक बार तुम्हारे ही साथ गया था।" 23 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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