SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . रह। ये दोनों बच्चियाँ मेरे साथ राजमहल चलेंगी। मृत देह को दण्डनाथ जी के शव के आने तक सुरक्षित रखवाने की व्यवस्था कीजिए। उसके आने के बाद इन दोनों, नहीं-नहीं, एक जीव के दो कलेवरों का राष्ट्र-मर्यादा के साथ संस्कार हो। यह एक अपूर्व दाम्पत्य है। हम कितना भी सोचें या रोएँ, वे तो लौटेंगे नहीं। परन्तु भगवान ऐसा क्यों करता है? क्यों सत्पुरुषों को असमय ही इस धरती से उसा लेता है? पर हो, कम-से-कम इतनी कृपा तो उसने की कि एक की मृत्यु की जानकारी दूसरे को न हो पायीं और इस तरह दोनों को एक साथ अपने पास बुला लिया। इतने से हमें अपने को दिलासा दे लेना होगा। उफ़। अब समय नष्ट न करें। दण्डनायिका जी को अच्छी तरह हल्दी रोरी तथा फूलों से सजाकर सुमांगल्यपूर्वक अन्तिम यात्रा के लिए नैगार रखें। इतने में टण्दनाथ जी का भी शव आ जाएगा। उनकी अन्तिम यात्रा की समाप्ति तक हम यहीं रहेंगे। जिन-जिन प्रमुख व्यक्तियों के पास खबर भेजनी हो, भेज दीजिए। दण्डनायिका की मृत्यु का समाचार युद्धभूमि तक पहुँचाने की आवश्यकता नहीं है। यह खबर महादण्डनायक जी को भी दे देनी चाहिए।' हेग्गड़े पारसिंगय्या “जो आज्ञा" कह वहाँ से चले गये। हेग्गड़ती और शान्तला वहीं रही आयीं। महादण्डनायिका चामब्बे, लसकी बेटियों और बाकी लोग भी शीघ्र वहाँ आ पहुँचे। दण्डनाथ के शव को जिस रथ पर ले आया गया था, उसी में चन्दलदेवी के भी शव को रखा गया और अन्तिम संस्कार के लिए ले जाया गया। मरियानं और मारसिंगच्या की देखरेख में दोनों भौतिक देहों का यथाविधि अन्तिम संस्कार सम्पन्न हुआ। युद्ध दिन-ब-दिन 'भयंकर रूप धारण करता गया। प्रतिदिन दोनों तरफ़ अगणित सैनिक एकत्रित होते ; पायसनों ने शत्रुओं को रसद पहुँचाने से रोक दिया। फिर भी उनके गजदल को पीछे हटा नहीं सके। गंगराज, डाकरस, महाराज बल्लाल और उनके भाई शाओं का सामना करने में डटे रहे। उधर शत्रुओं को पीछे से नाश करते हुए उनकी आहार सामग्नी को रोककर माचण, छोटे चलिकनायक और रावत मायण आगे बढ़ रहे थे। जग्गदेव के दो सैन्य दलों के बीच पड़कर चिपणप दण्डनाथ के मृत कलेवर को, उसी के साथ घायल होकर गिरा दलनायक जन्निगा हिले-डुले बिना पड़ा रहकर, रात को युद्ध विराम के वक्त किसी तरह अपने मुनाप पर पहुँचकर, इस मृत्यु-समाचार को बताकर मर गया था। रातों-रात चिण्णप दण्डनाथ के मृत शरीर को युद्धभूमि से राजधानी पहुँचा देने का कार्य हो चुका था। कारखाने में विशेष लौह से तीरों के नोक तैयार कर उनका हस्ति-दल पर 204 :: पट्टमहादेची शान्तला : भान दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy