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________________ का पता भी गुप्तचरों द्वारा लगा लिया। इतना सब करने के बाद उसने कलसापुर के मुकाम पर अपनी सेना के साथ तैयार बैंटे मात्रण दण्डनाथ को स्थिति की जानकारी देकर उससे मदद मांगी थी। माचण दण्डनाथ की सेना के पहुँचने तक प्रतीक्षा भी करनी थी। इस दौरान देवनूर की प्रजा को वहाँ की पहाड़ी उपत्यका में निर्मित शरण-स्थलों में भी सुरक्षित पहुँचा दिया गया था। शत्रु-संना को ग्राम की और न आने देने की पूर्व योजना के अनुसार देवनर के पूर्व की ओर एक कोस की दूरी पर पायसल सेना की कतारें तैयार रखी गयी थीं। माचण दण्डनाथ आगे की युद्ध-योजना की गतिविधियों के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करने और मौजूदा परिस्थिति को समझाकर आगे के कार्यक्रम का निश्चय करने के उद्देश्य से रातोंरात दोरसमुद्र चल पड़े। तब तक गुप्तचरों द्वारा शत्रु-सेना का परिमाण और उसकी शक्ति-सामर्थ्य का अन्दाज राजधानी को लग गया था। राजधानी के अधिकारी वर्ग व युद्ध-विशेषज्ञ इस उलझन में पड़े थे कि जग्गदेव इतनी बड़ी सेना जमा कैसे कर सका। वे इस समस्या को हल न कर सके थे। सेना के विवरण के साथ, रसद, भोजन आदि की व्यवस्था, सैनिकों में उत्साह भरने के लिए आवश्यक मनोरंजन के कार्यक्रम और अन्य दिल-वहलाय की व्यवस्थाएँ आदि सभी बातों की जानकारी दोरसमुद्र में पहुँच गयी थी। प्रमुख दल नायकों के मनोरंजनार्थ भारी स्त्री-समूह भी तैयार था। चालुक्य विक्रमादित्य की प्रेरणा से काकतीय प्रील को हराकर इस जग्गदेव ने गौरव प्राप्त कर लिया, यह खबर भी गुप्तचरों से मालूम हो गयी थी। सैन्य के दल-नायकों के मनोरंजन के लिए नियोजित स्त्री-समूह में अधिकतर काकतोय राज्य से अपहृत स्त्रियाँ हैं, वह इन गुप्तचरों की राय धी। सान्तरों की सेना की सहायक बनकर चालुक्य सेना की टुकड़ियाँ भी आयी हैं या नहीं, इस सम्बन्ध में निश्चित खबर अभी नहीं मिल सकी थी। फिर भी इस बड़ी सेना को नेस्तनाबूद करने के लिए क्या-क्या करना होगा, इस विषय को लेकर तुरन्त अमात्यों की बैठक बुलायी गयी। चूँकि बिट्टिदेव के पूर्व अनुमान के अनुसार ही शत्रु-सेना अग्रसर हुई थी। इस मन्त्रिपरिषद् में उसकी राय जानने के अनेक प्रसंग आये। मन्त्रणा के बाद यों निर्णय हुआ : "अभी जिस तरह सेना चार हिस्सों में विभाजित है उससे हमारे लिए शत्रु-सेना को जीतना सम्भव नहीं होगा। हमें सम्पूर्ण पोसल-सेना को मिलाकर जग्गदेव की सेना पर हमला करना होगा। इस पर विष्टिदेव ने एक सुझाव दिया, ''यह तो ठीक है कि हमारी सेना एक साथ होकर शत्रुओं का सामना करेगी। डाकरस दण्डनाथ अपनी सेना के साथ राजधानी आ जाएँ। यहाँ जो सेना है वह और उनके साथ आनेवाली सेना दोनों सम्मिलित हों। यह सम्मिलित सेना पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 187
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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