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मैं स्वयं सेवा में पहुँचती।"
"अपनी उस आशा को पूर्ण करने के लिए तुरन्त चले आना चाहिए। बेटी को पिता के पास आने के लिए समय-असमय के बारे में नहीं सोचना चाहिए।"
''जो आज्ञा।" "इस स्थान-परिवर्तन से हेग्गड़े मारसिंगच्या दुःखित हा होंगे."
"उन्हें सब बातें मालूम हैं। वे परेशान नहीं होंगे। उनको यह विश्वास है कि राजपरिवार को यदि हमारी आवश्यकता होगी तो वे बुला लेंगे। अषान्त के समय बाहुवली स्वामी के दर्शन के लिए तो जाना ही है। तब उन्हें भी नहीं आने के लिए सूचित कर देंगे।" ___"ठीक हैं।" कहकर पहाराज उठ खड़े हुए। एचलदेवी ने दरवाजे तक आकर स्वयं परदा हटावा। वे वहाँ से चले गये।
प्रभु रेयंग के स्वर्गवास के एक वर्ष बीतते ही बल्लाल के बौवराज्याभिषेक का निर्णय महाराज
किसे लियबाट बड़ी स्तन वा सभा होग करके लौटने के पश्चात् युवरानी एचलदेवी की इच्छा के अनुसार इस समारम्भ को सम्पन्न करने का निर्णय किया गया। यदि पहले जैसी स्थिति होती तो इस यात्रा के सन्दर्भ में दण्द्धनाविका शायद बहुत उत्साह दिखाती। परन्तु अबकी बार राजपरिवार के वेलापुरी से लौटने पर युवरानी जी के सन्दर्शन के लिए दण्डमाथिका ने प्रयत्न किये थे। लेकिन वह अपने प्रयत्नों में असफल रही 1 इसका गुस्सा उसने हेगड़े परिवार पर उतारा-चाहे पास रहे या दूर कोई न कोई गड़बड़ी तो पैदा करता ही रहता है। शायद ग्राम से उस हेग्गड़े ने खबर भेजी होगी। शिकायत भी की होगी कि दूर भेज दिया है। हमारी हज़ार शिकायतें की होंगी इसलिए तो युवरानी ने दर्शन नहीं दिये। ऐसी हालत में उसके स्थान परिवर्तन को लेकर राजमहल में विक्षोभ का वातावरण पैदा हो गया होगा। फिर इसको प्रतिक्रिया क्या हुई होगी-यही चामब्बा सोचती रहो।
परन्तु राजमहल में या अन्यत्र कहीं भी कुछ नहीं हुआ था। इस बात को समझने के लिए दण्डनायिका को बहुत समय न लगा। खुद दण्डनायिका चामध्ये को धरानी के दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था लेकिन उसकी बेटियों को कभी-कभी राजकुमारों से मिलते रहने का मौका मिल जाता था। उस कभी-कभी के मिलन में पहले की-सी मिलनसारी और उत्साह न दिखने पर भी कोई विपरीत भावना नहीं थी। इस बात को दण्डनायिका अपनी बेटियों से बातचीत करक समझ चुकी थी। उसके पति या भाई ने कोई ऐसी बात भी नहीं की थी कि जिससे
122 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो