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तक मैं जीती हूँ तब तक ऐसा नहीं होने दूंगी। चाहे कोई भी मेरा विरोध करे, मैं अपने अरमान पूरे करके ही रहूँगी।" ___ इस तरह सोचते-सोचते उसने तय कर लिया कि वह उनसे ज़रूर बदला लेगी जो उसके खिलाफ़ राजपरिवार को भड़का रहे हैं।
वेलापुरी में एक तरह से शान्ति से दिन गुजरे। कोई कार्य स्का नहीं, परन्तु कहीं कोई विशेष उत्साह नहीं दिख रहा था। चारुकीर्ति पण्डित की चिकित्सा से महाराज का स्वास्थ्य सुधर रहा था। राजकुमारों का पाट-प्रवचन यथावत् चलने लगा धा। महाराज के अनुभव का भी उन्हें लाभ मिलने लगा। अपने पुत्र के गुणों की चर्चा के प्रसंग में कभी-कभी वे बिहल हो ज्टते थे। अपने पौत्रों से कहने लगे, "तुम्हें अपने पिता से भी अधिक शूरवीर और गुणवान बनना है। तुम लोगों को दशरथ के पुत्रों की तरह जीना चाहिए। अप्पाजी, तुम पर बहुत शीघ्र ही सारी जिम्मेदारी आनेवाली हैं। हम इस बात को अपनी आयु और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बता रहे हैं। तुम्हारे पिता एक समय तुम्हारे विषय में बहुत चिन्तित थे। परन्तु इधर कुछ समय से तुममें हमारे इस वंश के अनुकूल गणों के विकास को देख वे गर्व करने लगे थे। जो अधिकारी होते हैं उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार आदेश में रखने की कुशलता शासक में स्वयं आ जाती है। अभी चढ़ता यौवन है तुम्हारा और खून गरम है। तुम्हें उकसाकर, लालच दिखाकर लोग अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकते हैं। तुम्हारे पिता एक नियम का पालन किया करते थे। कोई मुँह पर प्रशंसा करता तो वे उसका कभी विश्वास नहीं करते थे। उसे यह यात महसूस नहीं होने देते थे जिससे किसी तरह की अनबन न पैदा हो। अगर उन्हें किसी पर विश्वास रखकर चलना भी होता तो उसकी पहले अच्छी तरह से परीक्षा कर लेते थे। वह तुम्हें मालूम ही है कि उनका किन-किन पर पूर्ण विश्वास था। चदि नहीं जानते हो तो मैं बता दूंगा। वे हर बात हमें बता दिया करते थे। किसी भी बात को वे हमसे नहीं छिपाते थे। आमतौर पर पहले बताते और स्वीकृति लेते थे । कभी-कभी हमसे विचार करने का यदि समय न मिलता और तत्काल कोई निर्णय लेना होता या कार्य करना ही होता था तो अवकाश मिलते ही आकर हमें बता दिया करते थे। हमने उन्हें सब तरह से आज्ञादी दे रखी थी। फिर भी उन्होंने उस आजादी का दुरुपयोग नहीं किया। जहाँ तक मुझे याद है, उन्होंने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जो हमें अप्रिय लगा हो। हमने तुम्हारे उपनयन के अवसर पर उनके पट्टाभिषेक की बात सोची थी, लेकिन वह राजा नहीं बने। वे संकोच प्रकट करते तो भी मना लिया जा सकता था, परन्तु उस समय कुछ ऐसी घटनाएँ
9.4: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो