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________________ के साथ अन्दर जाकर प्रणाम कर बाहर आये। समंगलियों ने उनकी आरती उतारी। पश्चात् प्रभु अपने विश्राम कक्ष की ओर चले गये। उनके पैर से खून टपकने लगा था। मन्दिर से विश्राम-कक्ष तक रक्त की लकीर बन गयो थी। किसी का ध्यान उस तरफ नहीं गया था। परन्तु रेविभय्या की नजर में यह घटना छिपी न रहो। शेष सभी लोग उस दिन के भोज में शामिल होने चले गये। एचलदेवी ने सभी के साथ राजकुमार को भोजन करने भेज दिया। अकेला रत्रिमय्या आंसू भरी ऑटो को सिटिमाला हिंट विमुद्ध- स्टड़ा रहा गोना नाहकीर्ति पण्डित को बुलाने चला गया। पण्डितजी आये और आवश्यक चिकित्सा करने के बाद बोले, "प्रभु आराम करें। उन्हें कुछ लघु आहार दें। यदि वे न चाहें तो खाने को जोर न डालें।" फिर बताया, 'एक प्रहर बाद मैं आऊँगा।" इतना कहकर बाहर चले गये। एचलदेवी भी उनके साथ बाहर निकल आयीं। चारुकीति पण्डित ने सोचा कि शायद का पृष्ठने आयी हैं। उन्होंने कहा, ''घबराने का कोई कारण नहीं है, युवरानी जी, आप धीरज रखिा ।'' अच्छा पण्डितजी, यह बात बाहर किसी को मालूम न पड़े।"-चलदेवी ने बहुत ही संभलकर कहा। परन्तु उनके हदय की पीड़ा फुटकर बाहर निकल आयी और आँसू भर आये। पण्डितजी ने उन्हें देखा। कहा, "इतना अधीर होंगी तो कैसे काम चलेगा ! आप धीरज धरिण। इस तरह आप प्रभु के सामने आँसू बहाएँगी लो उनकी छाती फट जाएगी। उनके लिए अब आप ही धीरज का सहारा हैं।" __“चहीं हो पण्डितजी, जिससे मेरा सुहाग बचे। इतना ही चाहती हूं," इतना कहकर तथा आँसू पोंछकर उन्हें विदा किया। और स्वयं अन्दर चली गयीं । रंबिमय्या पत्थर की तरह खड़ा रहा। युवरानी ने उसे डाँटते हुए कहा, ''अरे रेविमय्या! पथराया हुआ-सा क्यों खड़ा है:" उसकी आँखें टिमटिमा रही थीं। कोरों में आँसू रुके हुए थे। एचलदेवी ने कहा, “जाओ, और प्रभु के लिए भोजन ले आओ।" ''हाँ' कहकर वह चला गया । एचलदेवी पलंग पर पतिदेव के निकट बैठ गयीं। उनका सिर सहलाती हुई बोलीं, 'प्रभु! बहुत खून बहा है। दई बहुत हो रहा होगा न?" "अब उतना दर्द नहीं है। पता नहीं क्यों आँखों में अँधेरा-सा छा गया। सिर्फ दो ही क्षण ऐसा रहा।..,मुझे आहार नहीं चाहिए। रविमव्या को यहाँ रहने के लिए कह दो और तुम जाकर भोजन कर आओ।" __“वह आपके लिए भोजन लाने गया है। मंगलस्नान करके उपवास नहीं रखना चाहिए। जितना भी खाया जा सके, खाइए। मैं बाद में ही खाऊंगी।" 106 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग टो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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