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________________ तुम्हारी बातों से लगता है कि कुछ अनहोनी बात हुई है।" "अगर आप इन बातों की ओर से आँखें मूंद लें तो क्या मैं भी अन्धी होकर बैठी रह सकती हूँ?" "क्या? क्या हुआ?" "क्या होगा? क्या होना चाहिए था? यह सोचकर कि युवरानीजी हेगड़ती पर सन्तुष्ट हैं, मैंने उस बलिपुर की हेग्गड़ती की ठहरने की व्यवस्था वहाँ की थी। पर मेरे ही पीछे-पीछे कुछ कुतन्त्र करके वह राजमहल में ही घुस बैठी। उस साधारण हेग्गड़ती के साहस को तो देखिए ? मतलब यह हुआ कि मेरी व्यवस्था का कोई मूल्य ही नहीं है। यही न?" "ओह! इतना ही। इसके लिए तुम्हें यह असमाधान? जैसा तुमने कहा, वह एक साधारण हेग्गड़ती है सही। पर युवराज और युक्रानी ने जब राजमहल में खुद बुलवा भेजा तो कौन क्या कर सकता है?" "ठीक हैं, तब छोड़िए । आप भी ऐसा सोचते हैं! एक युवरानी कहाँ ऐसा कर सकती है? आपने देखा नहीं कि सोसेऊरु जब गये थे तब हमें दूर ही ठहराया नहीं या?" "तुम्हें एक यह बात समझनी चाहिए। यह ठीक भी है। इसमें हेगड़ती का कोई षड्यंत्र नहीं है। खुः पुःन ने ही माय.मैं हो नि ! पूछा, 'तुमने इन लोगों को अलग क्यों ठहराया। उसने कहा, 'यह विषय मुझे मालूम नहीं।' युवरानीजी की इच्छा के अनुसार उन्हें बुला लाने के लिए मैंने ही रेविमय्या से कहा। युवरानीजी सचमुच बहुत गुस्से में आयी थी। परन्तु मुझे यह मालूम नहीं था कि तुमने उन लोगों को अन्यत्र भेज रखा था। तुम्हें यह सब क्यों करना चाहिए था। किसने करने को कहा था?" "जाने दीजिए। कल महाराज के ससुर बनकर इतराते बड़प्पन दिखानेवाले आप ही ऐसा कहें तो मैं ही आशा लेकर क्या करूँ? प्रयोजन ही क्या है ? अपनी इन बच्चियों को किसी साधारण सैनिक अधिकारी को या पटवारी को देकर उनसे विवाह कर दीजिएगा और वह साधारण हेग्गड़ती अपनी लड़की को भावी महाराजा की रानी बनाकर बड़प्पन दिखाती फिरे? इसे देखने के लिए मैं जीवित रहूँगी! ठीक है न?" "क्या बात कह रही हो? ऐसा होना कहीं सम्भव है?" "सम्भव है, मैं कहती हूँ यह होकर रहेगा। हजार बार कहूंगी। वह हेग्गड़ती कोई साधारण स्त्री नहीं। उसने युवरानी को वशीकरण से अपने वश में कर रखा है। आप मर्द इन सब बातों को नहीं समझते। अभी से आप चेते नहीं तो फिर हमारी अभिलाषाएँ धरी-की-धरी रह जाएँगी। मैंने सोसेऊरु में ही कह दिया था कि युवरानी ने मेरी सलाह को कोई मान्यता नहीं दी। अभी भी एक भरोसा है। यह यह कि कुमार पट्टमहादेवी शान्तला :: 103
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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