SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसका अनुमान भी वह कर चुकी श्रीमगर्स अपनी बहू बनाना चाहेगी, इसके लिए यह सारा वातावरण सहयोगी बनकर नहीं रहेगा-इस बात को भी वह समझती थी। इस सबके अलावा एक और मुख्य बात यह थी कि अपने बड़े बेटे का मन चामना की बड़ी लड़की के प्रति विशेष आकर्षित था-यह भी उससे छिपा न था। अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए एक दूसरी लड़की को बलिवेदी पर चढ़ाना उचित नहींइस बात को वह अच्छी तरह समझती थी। यह सब ठीक है। परन्तु चामन्चा को हेग्गड़ती और उसकी उस मासूम बालिका पर विद्वेष की भावना क्यों है? शायद उसके मन में यह शंका हो कि हेग्गड़ती की लड़की की उसकी लड़की के साथ स्पर्धा हो रही है। हो सकता है। इसी वजह से चामत्रा यह सब खेल खेल रही हो। कैसे लोग हैं ? मैंने खुद भी यह नहीं सोचा था। हेग्गड़ती तो इस तरह की बात सोचने तक का साहस नहीं कर सकती। अपने स्थान-मान का उसे बोध नहीं? ऐसी हालत में इतनी ईर्ष्या क्यों? सम्भवतः चामन्ला मन में अपने पद को हमसे अधिक समझती होगी। इसीलिए हेगड़ती और उसकी बेटी का अस्तित्व सहन नहीं कर पाती। उसके विचार में राजमहल का आदर, प्रीति और विश्वास आदि सब उसी का स्वत्व है, उनपर दूसरे का अधिकार उसे सह्य नहीं। हम उसके इन विचारों के अनुसार कैसे रह सकेंगे? प्रजा ही हमारा धन है। प्रजाजन का आदर-प्रेम ही तो हमारा जीवन है। अगर हम अपने प्रजा-जन के प्रति आदर प्रेम विश्वास न रखें तो हमको जो बड़प्पन उनसे मिला है, वह अयोग्य और अपात्र को दिये दान के समान अनादरणीय ही होगा। प्रजा-जन हमपर जो प्रेम-विश्वास और आदर रखते हैं उसके योग्य हम हैं---इस बात को साबित करना होगा, इसके लिए उनके साथ सद्व्यवहार कर उन्हीं से प्राप्त बड़प्पन को सार्थक करना हो हमारा ध्येय होना चाहिए। हे भगवन् जिमनाथ! ऐसा अनुग्रह करो कि हमारे मन पें ऐसी दुर्भावना, ईर्ष्या पैदा न हो। हमारा प्रत्येक व्यवहार प्रजा-जन के सन्तोष के लिए ही बना रहे, यह आशीर्वाद हमें दो, यही आपसे हमारी प्रार्थना है। भगवन्! हमें बल दो। उसने भगवान् के सामने यो निवेदन किया। इस तरह मानसिक संघर्ष से मुक्त होकर मन में उत्पन्न सभी विकारों को दूर करके युवरानी निश्चल भाव से अपने ध्येयधर्म पर अटल बनी रही। चामन्चा के व्यवहार से हेग्गड़ती माचिकब्बे के मन में कशमकश पैदा हो गयी थी। परन्तु युवरानी एलचदेवी के उदार व्यवहार से चामव्वा के व्यवहार के बारे में लापरवाह हो रही । शान्तला का ध्यान तो इस ओर गया ही नहीं। बलिपुर में जिस ढंग से उसके कार्यक्रम चलते थे उस क्रम में कोई बाधा नहीं आयी । यथावत् सब चलता रहा। एक विशेष बात यह थी कि यहाँ के कार्यक्रमों में राजकुमार बिट्टिदेव का साथ रहा। युवरानी के आग्रह से उन लोगों को कुछ अधिक समय तक टहरना पड़ा था। इसके बाद हेग्गड़ेजी का परिवार महाराजा, युवराज और युवरानी, प्रधान गंगराज, बड़े पट्टमहादेवी शान्तला :: 69
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy