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________________ पहले तुम्हारा जन्म होकर बाद को उसका जन्म हुआ होता तो अच्छा होता।" युवरानो ने कहा। "मुझे सिंहासन पर बैठने की तनिक भी चाह नहीं। भैया कुछ स्वभाव से जल्दबाज हैं, फिर भी उनका हृदय बड़ा कोमल है। आपकी आज्ञा को मैं कदापि न भूलूँगा। भैया का स्वभाव में अच्छी तरह समझता हूँ। उनके और सिंहासन के रक्षाकार्य के लिए यह मेरे प्राण धरोहर हैं । प्राणपण से उनकी रक्षा करूँगा। आपके चरणों की कसम; यह सत्य है।" युवरानी एचलदेवी ने बेटे को प्रेम से खींचकर, अपनी बाहों में उसे कसकर आलिंगन कर लिया और कहा, "सुनो, बेटा, अब सुनाती हूँ। जो आये हैं वे सभी कल-परसों तक चल जाएंगे। महाराजा से आशीर्वाद लेने के लिए तुम्हारे बड़े भैया को साथ लेकर हमें दोरसमुद्र जाना ही है। हम त्रयोदशी गुरुवार के दिन रवाना होंगे। वे लोग बेलुगोल जानेवाले हैं न? उन्हें हम अपने साथ दोरसमुद्र ले जाएंगे। वहाँ से बेलुगोल नजदीक भी है। वहाँ से उन्हें विदा करेंगे। यह मैंने सोच रखा है। उस समय तुम्हें कविजी से मिलकर बातें करने के लिए बहुत समय मिलेगा। ठीक है न?" माँ ने उसके लिए कितना और क्या सोच रखा है, यह जानकर बेटा बिट्टिदेव चकित हो गया। और कहा, "माँ, मेरी, मैं समझ न सका, अब ठीक हो गया।" "तुमको जो पसन्द आए, वही करूँगी। अब तुम अपने काम पर जा सकते हो: 'आज्ञा पास ही बिदिव नयी जान आ गया और वह चला गया। युवराज की आज्ञा होने पर हेग्गड़े पारसिंगय्या को अपनी यात्रा स्थगित करने के सिवा दूसरा कोई चारा न था। श्रीमान् युवराज के परिवार के साथ ही इन लोगों ने दोरसमुद्र की यात्रा की। सोसेऊरु में रहते वक्त रात की निद्रा और दिन के स्नान-पान मात्र के लिए हेग्गड़ती माचिकने और अम्माजी शान्तला अपने मुकाम पर रहती; शेष सास समय वे राजमहल में ही व्यतीत करती । शान्तला के पाठ-प्रवचन के लिए बाधा न हो, ऐसी अलग ही व्यवस्था राजमहल में की गयी थी। दोनों दिन राजकुमार बिट्टिदेव पढ़ाते समय यहीं रहा। शान्तला अपनी पढ़ाई में ऐसी मगन रहती कि उसे किसी के रहने न रहने की परवाह न थी। उसका इस तरह रहना बिट्टिदेव को अच्छा लगा। कभी-कभी तो उसे भान होता था कि शान्तला उससे भी ज्यादा बुद्धिमान और सूक्ष्पग्राही है। दोनों दिन वह भी मूक-प्रेक्षक बनकर न रहा। बीच-बीच में सवाल करता रहता था। कवि बोकिमय्या सन्तोषजनक उत्तर भी देते रहते । कविजी ने पढ़ाने के नये तरीके का आविष्कार कर लिया था, इन दो वर्षों की अवधि में। शान्तला को पढ़ाने के लिए वह आविष्कार आवश्यक हो गया था। चाहे छात्र कितना ही प्रतिभावान हो उसकी उम्र 56 :: पट्टमहादेवी शासला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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