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________________ पात्र न बने होंगे? कितने शत्रुओं की आहुति न ली होगी उन्होंने? धारानगरी के युद्ध में युवराज ने जो कौशल दिखाया था उससे भी एक कदम आगे मेरे प्रियपात्र का कौशल न रहा होगा? वे जब लौटेंगे तब जयमाला पहनाने का मौका सबसे प्रथम मुझे मिले तो कितना अच्छा हो? परन्तु ऐसा मौका मुझे कौन मिलने देगा? अभी पाणिग्रहण तक तो हुआ नहीं? वह हुआ भी कैसे होता? माँ की जल्दबाजी और षड्यन्त्र होने देते तब न? अब पता नहीं, होगा भी या नहीं। जयमाला पहनाने का नहीं तो कम-से-कम आरती उतारने का ही मौका मिल जाए। भगवान से प्रार्थना है कि वे विजयी होकर जल्दी लौटें। मुझे तो सदा उन्हीं की चिन्ता है, उसी तरह मेरे विषय में चिन्ता उनके मन में भी होनी ही चाहिए। लेकिन उन्होंने मेरे लिए कोई खबर क्यों नहीं भेजी ? आने दो, उन्हें इस मौन के लिए अच्छी सीख दूँगी, ऐसा पाठ पढ़ाऊँगी कि फिर दुबारा कभी ऐसा न करें। उसकी यह विचारधारा तोड़ी नौकर दडिग न जिसने आकर खबर दी कि उसे दण्डनायकजी बुला रहे हैं। पद्मला को आश्चर्य हुआ। कोई बात पिता स्वयं उसके पास आकर कहा करते थे, आज इस तरह खुला भेजने का कारण क्या हो सकता है ? दिमाग में यह बात उठी तो उसने नौकर से पूछा, "पिताजी के साथ गुरुजी भी हैं क्या?" "नहीं, अकेले हैं।" दडिग ने कहा। "मौं भी वहीं है?" "नहीं, वे प्रधानजी के यहाँ गयी हैं।" "कब?" "बहुत देर हुई।" "पिताजी कब आये?" "अभी कोई आध-घण्टा हुआ।आकर राजमहल की वेष-भूषा उतारकर हाथमुंह धोकर उन्होंने आपको बुलाने का हुक्म दिया, सो मैं आया।" "ठीक" कहकर पद्यला उठकर चली गयी। जब वह पिता के कमरे में गयी तो देखा कि पिता पैर पसारे दीवार से पीठ लगाकर पलंग पर बैठे हैं। किवाड़ खोलकर पद्मला ने अन्दर प्रवेश किया तो तकिये से लगकर बैठते हुए बोले, "आओ, बेटी, बैठो।" "तुम्हारी माँ ने तुम्हारे मामा के घर जाते समय तुमसे कुछ कहा, अम्माजी?" "पिताजी, मुझे मालूम ही नहीं कि माँ वहाँ गयी हैं।" "मैंने सोचा था कि उसने कहा होगा। कोई चिन्ता नहीं। खबर आयी है कि युवराज लौट रहे हैं। इसलिए तुम्हारे मामा ने माँ को बुलवाया है। मैंने सोचा था कि यह बात उन्होंने तुमसे कही होगी।" "विजयोत्सव की तैयारी के बारे में विचार-विनिमय के लिए माँ को बुलवाया पट्टमहादेवी शान्तला :: 401
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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