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________________ "तुमने कह दिया इसलिए तुम क्षमा करने योग्य हो।" मुझे अबकी बार भी उनके साथ युद्ध-रंग में जाने की प्रबल इच्छा हुई थी। परन्तु प्रभु ने मुझे इधर आने का आदेश दिया तो दूसरा कोई चारा नहीं रहा। यहाँ रहने पर भी मुझे युद्धरंग की ही चिन्ता है। वहाँ से कोई समाचार मिला?" मायण ने पूछा। __"हम तक पहुँचाने जैसी कोई खबर नहीं मिली होगी। ऐसी कोई खबर आयी होती तो हेग्गड़ेजी हमें बताये बिना नहीं रहते।" सिंगिमय्या ने कहा। शान्तला सारी घटना सुनने में मगन रही आयो, इसलिए गजरा वैसा-का-वैसा ही रह गया। बिट्टिदेव भी उसे सुनने में तल्लीन हो गया था। आगे बात किस ओर मुड़ती, पता नहीं। इतने में रेत्रिमय्या ने आकर कहा कि सबको बुलाया है, तो सब घर की ओर चल पड़े। पनि भोज समाप्त राजानीपी ने जातको एक पीताम्बर, वैसी ही एक चोली, और एक जोड़ी सोने के कंगन दिये।। माचिकवे ने अपना संकोच प्रदर्शित किया, "यह सब क्यों?" "मांगलिक है। आशीर्वादपूर्वक दिया है। फिर यह रेविमय्या की सलाह है।" युवरानी ने कहा। माचिकच्चे और शान्तला दोनों ने रेविमय्या की तरफ देखा। वह उनकी दृष्टि बचाकर दूसरी तरफ देखने लगा। उसने नहीं सोचा था कि युवरानीजी बीच में उसका नाम लेंगी। उसे बड़ा संकोच हुआ। राज्य की श्रेष्ठ-सुमंगली युवरानीजी निर्मल मन से स्क्यं आशीर्वादपूर्वक मंगलद्रव्य देती हैं तो उसे स्वीकार करना मंगलकर ही है, यह मानकर शान्तला ने स्वीकार किया और युवरानीजी को सविनय प्रणाम किया। युवरानी ने उसका सिर और पीट सहलाकर आशीर्वाद दिया, "सदा सुखी रहो, बेटी । तुम्हारा भाय अच्छा है। यद्यपि भाग्य अच्छा होने पर भी सुबुद्धि रहती है, यह कहना कठिन है क्योंकि भाग्यवानों में भी असूया और कुबुद्धि सक्रिय हो जाती है। यह मैंने देखा है और इसकी प्रतिक्रिया का भी अनुभव मैंने किया है। उन्नत स्थिति पर पहुँचने पर तुम्हारा जीवन सहज करुणा से युक्त और असूया से रहित हो, तुम गुणशील का आगार बनकर जिओ।" शान्तला ने फिर एक बार प्रणाम किया, मानो बता रही थी कि आशीर्वाद, आज्ञा शिरोधार्य है। युवरानी ने उसके गालों को अपने हाथ से स्पर्श कर नजर उतारी और कहा, "ये चूड़ियाँ और यह पीताम्बर पहन आओ, बेटी।" माँ को सहायता से वह सब पहनकर लौटी तो बिट्टिदेव खुशी से फूला न समाया। क्योंकि वेणी में वहीं गजरा मुंथा था जिसे उसने तभी सीखकर अपने हाथ से बनाया था। शान्तला ने फिर एक बार युवसनी के पैर छुए। फिर माता-पिता, मामा और 398 :: 'पट्टमहादेवी शरनला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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