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________________ "दुख क्या सहा होगा, परन्तु दुख के बदले अगर क्रोध उत्पन्न हो तो मनुष्य शकुनि बन जाता है और जिसे क्रोध नहीं आता, वह पुरुष दुख का अनुभव करते हुए भी धर्मराज युधिष्ठिर बनता है।" "तो तुम्हारा मतलब है कि मायण का क्रोध गलत है।" "असलो बात जाने बिना निर्णय नहीं कर सकते। पहले मायण की बात सुननी होगी और फिर उस स्त्री की भी। उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचना होगा।" "तो फिर शकुनि और युधिष्ठिर की तुलना का कारण?" "मनुष्य क्रोध के फलस्वरूप मानवता खो बैठता है, यह बुजुर्गों का अनुभव "जो भी हो, उस कहानी को जानने के बाद अब उनके उस क्रोध का निवारण करना चाहिए।" "उन्होंने हमारे गुरुवर्य से अपनी बात कही होगी तो वे उन्हें समझाये बिना न रहेंगे, बल्कि उन्हें सही दिशा में सोचने को प्रारत भी करेंगे। "भोजन के लिए अभी देर है, वे सब चुपचाप बैठे भी हैं, रेत्रिमय्या से कहला भेजें और उन्हें बुलवाएं तो क्या गलत होगा?" "वडों को इस तरह बुलवाना ठीक नहीं होता।" इनकी बातचीत पास में उस ओर स्थित लोगों को सुनाई दे रही थी। रेलिमय्या ने दासब्वे को इशारे से पास बुलाया और कहा, "ये फल ले जाकर अपनी छोटी पालकिन को दे दो, वे चाहें तो केले के रेशे में पिरोकर एक गजरा भी तैयार करके दो। राजकुमार तुम्हारे साथ रहेंगे। मैं जल्दी लौटूंगा।" दासब्वे केले का रेशा और कुछ सुगन्धित पत्ते अपने पल्ले में भरकर, उदयादित्य के साथ विष्टिदेव और शान्तला के पास पहुंची। बिट्टिदेव ने पूछा, "उदय, फूल चुन चुके न?" "हाँ।" शान्तरला ने कहा, "आइए, बैठिए।" दासब्जे फूलों को घास पर रखकर एक और बैठ गयी। उदयादित्य शान्तला के पास जा बैठा। बिट्टिदेत ने पूछा, "रेविमय्या कहाँ है ?" "घर की ओर गया है, अभी आता ही होगा।" दासल्वे ने कहा, और फूल गूंथना शुरू किया। शान्तला ने उसका साथ दिया। इस तरह फूलों को रेशे से गूंथना बिट्टिदेव और उदयादित्य ने पहली ही बार देखा था। फूल गूंथने में दासब्जे से तेज शान्तला की उँगलियों चल रही थी जिसमें यह काम बहुत आसान हो गया। बिट्टिदेव ने भी साथ देना शुरू किया लेकिन उससे न तो 15 :- पट्टमादया शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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