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________________ है। एक शब्द भी ठीक नहीं जंचा तो उसे काटकर दूसरा लिख दिया। मगर हमारे काम में ऐसा नहीं, कोई एक अंश बिगड़ा तो सभी बिगड़ा, फिर तो शुरू से दूसरी ही मूर्ति बनानी होगी।" 'शुक्रनीति से उक्त प्रतिमा लक्षण का हवाला देकर विस्तार के साथ समझाया दासोज ने। शान्तला और उदयादित्य मौन रहे। समय का पता ही न चला। भोजन का वक्त आने पर सब वहाँ से गये। रेविमय्या ने सबसे पीछे, गर्भगृह की ओर मुंह करके हाथ जोड़कर सिर झुकाकर प्रार्थना की हे भगवन्, आपकी कृपा से इन दोनों बच्चों का जीवन तुम्हारी ही तरह द्वन्द्व-रहित हो। रोज का कार्यक्रम यथावत् चलने लगा। चावुण बिट्टिदेव से एक साल बड़ा था। वंशानुगत ज्ञानार्जन की प्रवृत्ति उसमें प्रबल थी किन्तु उसके पिता ने जो सिखाया था उसके अलावा अन्य विषय सीखने की उसे सहूलियतें नहीं मिली थी। संयोग से अब अन्य बालकों के साथ सभी साहित्य, इतिहास, व्याकरा आदि की शिक्षा प्राकर को सहूलियत प्राप्त हुई। इसके फलस्वरूप उसके अन्तर्निहित संस्कार को एक नया चैतन्य राप्त हुआ। बहुत बड़े लोगों के सम्पर्क के फलस्वरूप संयम भी उसमें आया। विट्टिदेव से कुछ घनिष्टता हुई, जिससे धीरे-धीरे उनका शस्त्राभ्यास भी देखने का अक्सर उसे मिला। अधिक समय तक अभ्यास न कर सकनेवाले उदयादित्य के साथ बैठकर उन लोगों के अभ्यास को देखना उसका दैनिक कार्यक्रम बन गया। उसने शस्त्राभ्यास की इच्छा भी व्यक्त की परन्तु वह मानी नहीं गयी क्योंकि कोपल कला का निर्माण करनेवाली वे कोमल हस्तांगुलियाँ शस्त्राभ्यास के कारण कर्कशता पाकर कोमल- कला के लिए अनुपयुक्त हो जाएँगी, यह समझाकर उसके पिता दासोज ने ही मना कर दिया था। फिर भी वह शस्त्राभ्यास के दौर पर आया करता और वहीं से शस्त्रास्त्र-प्रयोग की विविध भंगियों के चित्र बनाने लग जाता। उदयादित्य ने इन चित्रों से उत्साहित होकर चाक्षुण से शिल्प-कला, मन्दिरनिर्माण आदि बहुत से विषयों का परिचय पाया। यह इस तरह से जो सीखता उसपर तनहाई में बैठकर शान्तला से विचार-विनिमय कर लेता। इस पर चावुण-उदयादित्य और उदयादित्य-शान्तला में अलग ही तरह का मेल-जोल बढ़ा। उस दिन हेग्गड़ेजी के घर एक छोटी गोष्ठी का आयोजन था। बाहर कोई धूमधाम न थी, घर के अहाते के अन्दर उत्साहपूर्ण कार्यकलाप चलते रहे । स्वयं युवरानीजी और राजकुमार भी वहाँ आये, इससे मालूम पड़ता था कि हेग्गड़े के घर में कोई विशेष कार्यक्रम होगा। वह शान्तला का जन्मदिन था। जब राजकुमार का जन्मदिन ही धूमधाम से नहीं मनाया गया तो अपनी बेटी का जन्मदिन हेग्गड़े जी धूम-धाम से कैसे मनात? पद्महादेवी शानला :: 347
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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