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________________ रहा था कि अभी भोजन का वक्त भी नहीं हुआ। आज देकचा भी जैसे इतनी सुस्त हो गयी है कि उसे हमें खाने पर बुलाने के समय का पता ही नहीं लग रहा है। वह एक-दो बार रसोई का चक्कर भी लगा आयी। देकव्वा अपने काम में मगन थी। उसने रसोई की दीवार पर दो निशान बना रखे थे। जब सूरज की किरण उस चिह्न पर लगे तब उसे समय का पता लग जाता, यह निशान देकव्वा के लिए घड़ी का काम देता। लेकिन चामव्या को तो रात की प्रतीक्षा थी। देकव्वे भोजन की तैयारी की सूचना देने आयी तो उसने पूछा, "आज इतनी देरी क्यों की, देकव्या?" "देरी तो नहीं की, आज कुछ जल्दी तैयार करना चाहिए था क्या?" "बैठो, बैठो, वैसे ही आँख लगी तो समझा कि देर हो गयी। सब तैयार है न?" "हाँ, माँ, बुलाने के लिए ही आयी हूँ।" "ठीक है, बच्चियों को बुलाओ। मैं मालिक को बुला लाऊँगी।" वह बाहर आयो। नौकर से पूछा, "अरे दडिग, मालिक घर पर नहीं हैं?" चामले की जोर की यह आवाज घर-भर में गूंज गयी! दडिग भागा-भागा आया, बोला, "मालिक राजमहल की ओर जाते-जाते कह गये हैं कि आते देर लगेगी।" "पहले ही क्यों नहीं बताया, गधा कहीं का।" झिड़कती हुई उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना चली गयी। बच्चियाँ आकर बैठ गयी थीं। वह भी बैठी मगर बड़बड़ाती रही, "वह दडिग बेवकूफ, यहाँ मुफ्त का खाकर घमण्डी हो गया है, काम करने में सुस्त पड़ गया है, ऐसा रहा तो वह इस घर में ज्यादा दिन नहीं टिक सकेगा। देकव्वा, कह दो उसे।" भोजन रोज की तरह समाप्त हुआ। उसे केवल एक काम रह गया, पतिदेव को प्रतीक्षा । बच्चियाँ अपने-अपने अभ्यास में लगीं। पढ़-लिखकर वे सो भी गयौं। पहला पहर गया। दूसरा भी ढल गया। तब कहीं तीसरा पहर भी आया। घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुन पड़ी तो वह पतिदेव के कमरे की ओर भागी कि ठीक उसी वक्त दूसरी तरफ से जल्दी-जल्दी आया दडिग उससे टक्कर खाता-खाता बचा। फिर भी उसे झिड़कियाँ खानी ही पड़ी। " अरे गधे, साँड की तरह घुस पड़ा। क्या आँखें नहीं थीं तम्हारी? "मालिक..." "मालूम है, जाओ।" चामब्वे ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा, "अगर राजमहल जाना ही था तो कुछ खा-पीकर भी जा सकते थे।" "मुझे क्या ख्वाब आया था, तुम्हारे भाई ने हरकारा भेजा तो मैं गया।" 166 :: पट्टयहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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