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________________ __ आ गये तो बच्चियों को कुछ संकोच हुआ जिससे मैंने ही पाठ समाप्त कर दिया। अच्छा, चलूँ।" देकच्चे ने दरवाजे की आड़ से अन्दर झाँका। मरियाने एक कालीन पर दीवार से पोठ लगाकर बैठे थे। उनकी गोद में बोम्मि बैठी थी। बाकी दोनों पिता के पास बैठी ___ थीं। "आज तुम्हारी माँ ने तुम सबको पुरस्कार दिया है, है न?" "तभी तो मैंने दिखाया था।" घोप्पि ने कहा। "हाँ, मैं भूल ही गया था।" कहते हुए उसे अपनी तरफ मुँह करके बैठाया और उसके वक्ष पर लटक रहा पदक हाथ में लेकर कहा, "बहुत अच्छा है, बेटी। ऐसा ही एक हार मुझे भी बनवा देने को अपनी अम्मा से कहोगी?" उसकी ठुड्डी पकड़कर हिलाते हुए प्रेम से थपथपाया उन्होंने । बोप्पि ने पूछा, "ऐसा हार कहीं पुरुष भी पहनते हैं?" "क्यों नहीं, देखो मेरे कानों में भी बालियाँ हैं, तुम्हारे भी हैं, मेरी उँगलियों में अंगूठी हैं, तुम्हारी में भी हैं।" "तो क्या स्त्रियाँ पगड़ी भी बाँध सकती हैं?" "बाल कटा दें तो पगड़ी भी रख सकती हैं।" "छि:, छिः, कहीं स्त्रियाँ भी बाल कटवाती हैं?" बाहर खड़ी देकबे ने दाँत काटा। "तो मतलब हुआ कि पगड़ी नहीं चाहिए 1 मुझे तो ऐसा पदक और कार चाहिए। जाकर अपनी माँ से कहो, उसी सुनार से बनवाए। अच्छा, आज तुम लोगों ने क्या अभ्यास किया है। तुम तीनों करके दिखाओगी।" "आप मदंग बजाकर स्वर के साथ गाएँ तो दिखाएंगी।" चामला ने उत्तर दिया। "वह तो मैं जानता नहीं।" "वह न होगा तो नाचना भी नहीं हो सकेगा, पिताजी।" पद्मला ने कहा। "तो जाने दो। जब तुम्हारे गुरुजी उपस्थित होंगे तब आकर देख लूँगा। ठीक है न?" सबने एक साथ कहा-"हाँ।" "तुम्हारी माँ ने यह पुरस्कार तुम लोगों को क्यों दिया, मालूम है?" पद्मला ने कहा, "बच्चियाँ हैं, इसलिए प्रेम से बनवा दिया होगा।" "बस, और कुछ नहीं बताया?" "और क्या कहेंगी। जब कभी कीमती जेवर देती हैं तब माँ यही एक बात कहा करती हैं। वह चाहती हैं कि उनकी बच्चियाँ सदा सर्वालंकारभूषिता होकर सुन्दर लगें और वे अपनी हैसियत के बराबर बनी रहें। फिर दूसरों की नजर न लगे, इसलिए सदा 364 :: पटुमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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