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________________ पण्डित से मिलने के पहले एक बार आपसे पूछ लेना चाहिए था। लेकिन मेरा। के वास्तविक उद्देश्य बच्चों की भलाई ही है, साथ ही, आप भी महाराज 'ससुर बनने की इच्छा रखते हैं, इसलिए मेरे व्यवहार और कार्य को आप मान लेंगे, यही विचार कर आपकी स्वीकृति के पहले चली गयी। अगर मुझे अनुमान होता कि आप स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं नहीं जाती। इसलिए इसके पश्चात् मैंने वैसा ही किया जैसा आपने कहा। फिर भी आप असन्तुष्ट क्यों हैं ? पिछली बार आपको और मेरे भाई को जब महाराज ने बुलाया था तबसे आपका ढंग ही कुछ बदल गया है। अगर कोई गलती हुई हो तो स्पष्ट कह दें। अपने को सुधार लूँगी । यो मौन और गुमसुम बैठे रहे तो मुझसे सहा न जाएगा। मेरे लिए कुछ भी हो जाए, परन्तु इन मासूम बच्चियों ने क्या किया है ? बेचारी बच्ची कण्ठहार दिखाकर आपसे प्रशंसा पाने की आशा से पास आयी तो नाराजगी दिखाकर झिड़क दिया, इससे कौन सा महान कार्य किया। जब तक आपसे प्रशंसा न सुनेगी तब तक उसे न पहनने के इरादे से उसने उसे निकाल दिया था। उसे -से-कम 'अच्छा' प्यार से फुसलाती-फुसलाती में थक गयी। उस बच्ची को कमकहकर उसे सन्तुष्ट तो कर दें।" उसकी इन बातों का कोई प्रभाव न हुआ, वह टस से मस न हुआ। पत्थर की तरह दृढ़ और अचल रहा। न मुँह खोला, न पत्नी की ओर देखा हो । चामध्ये पारिवारिक जीवन के आरम्भ से ही अपने पतिदेव को कठपुतली बनाकर नचाती आयी थी, अभी वह सफल भी होती आयी थी लेकिन आज उसके अहं को जोर का धक्का लगा। ऐसी हालत में आगे का कदम क्या हो, यही सोचती बैठी रही वह । सम्भव है कि राजमहल के किसी मामले ने पतिदेव के मन को कुछ क्रप्ट पहुँचाया हो। मगर उन्हें मुझसे कह सुनाने में हिचकिचाहट क्यों ? शायद इस विवाह के बारे में बात उठी हो और महाराज ने उसका विरोध किया हो। यदि यह बात कह दें तो मुझे दुःख होगा, यही सोचकर शायद मौन हैं। हाँ, यही कारण हो सकता हैं। कौर धारी हो तो निगले भी कैसे, जबरदस्ती मेरे गले में ठूसें भी कैसे ? बेचारे अन्दर ही अन्दर अकेले टीस का अनुभव कर रहे हैं। अब किसी-न-किसी तरह उन्हें सान्त्वना देनी ही होगी। मगर मेरा यह विचार गलत हो तो मुझपर यह दोष तो पहले से ही लगा है कि जल्दबाज हूँ। रुककर देखूँगी, यह ज्वालामुखी कब फटेगा | वह एकदम उठ खड़ी हुई और चली गयी। जब वह चली गयी, तो मरियाने ने देखा कि रंग ठीक नहीं है। उसने उसे बुलाना चाहा। फिर उसका मन बदला। कुछ क्षण बाद धीरे से उठा, गुसलखाने की ओर गया। हाथ-मुँह धोकर आया, अन्दर के प्रकोष्ठ में पहुँचा ही था कि रसोई की ओर से नौकरानी कव्वा आयी। उससे पूछा, " बच्चियाँ कहाँ गर्यो । " "नाट्याचार्यजी आये हैं। " 362 :: पट्टी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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