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________________ धर्मकामाः यथा ते तत्र वर्तेरन् तथा तत्र वर्तेथाः । अर्थात् कर्म क्या है क्या नहीं यह निश्चय न हो पा रहा हो, या चरित्र क्या है क्या नहीं यह निश्चय नहीं हो पा रहा हो तो उस व्यवहार के आधार पर निश्चय करना चाहिए जो ऐसे मौकों पर ब्राह्मणों, विचारशीलों, प्रमाणित योग्यतावालों, उच्च पदासीनों, दयालुओं या धर्मात्माओं का होता है। जो करना चाहते हो उसमें अथवा बरतना चाहते हो उसमें अनिश्चय की स्थिति में राजघराने के सदस्यों को प्रजा का मार्गदर्शक बनने के लिए उपनिषद् की इस उक्ति के अनुसार चलना होगा। ऐसा चलनेवाला ही ब्राह्मण है। जन्ममात्र से ब्राह्मणत्व के संकुचित अर्थ में यहाँ ब्राह्मण शब्द का प्रयोग नहीं हुआ, ब्राह्मण वह आदर्श जीवी है जिसने ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया है। इसीलिए आदर्शजीवी बनना ही चाहिए । यही हम शिक्षकों का आशय है। सन्निधान हमसे जो आशा रखती हैं वह हमारे लिए मान्य है 11" कवि नागचन्द्र के तर्कपूर्ण कथन का समर्थन करके भी युवरानीजी ने उसके एक समकक्ष पहलू की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, आपका कथन ठीक है । राजाओं का नेतृत्व बहुत उच्च स्तर का होना चाहिए। लेकिन व्यवहार और अनुसरण के स्तर की दृष्टि से समाज में जो विविधता है उसमें और मार्ग-दर्शन में समन्वय होना चाहिए। राज्य साधारण ग्राम जैसे छोटे-छोटे घटकों की एक सम्मिलित हाई है, आप प्राप सेना तक सभी स्तरों में आदर्श के "G अनुरूप व्यवहार अत्यन्त वांछनीय है।" इस सिद्धान्त की पुष्टि में उन्होंने एक उदाहरण भी आवश्यक समझा। "पोप्सल साम्राज्य शुद्ध कन्नड़ राज्य है। अभी वह अपना अस्तित्व ही मजबूत बना रहा है। उसके अस्तित्व की रक्षा और प्रगति एक सुव्यवस्थित सामाजिक जीवन से ही हो सकती है। उदाहरणस्वरूप यह बलिपुर ही लीजिए। यहाँ के नेता हेगड़े हैं। आपके कहे अनुसार आदर्श नीति का अनुसरण करनेवाले वे भी हैं, यह बात प्रभुजी ने मुझसे अनेक बार की है और मैंने स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव किया है! शायद आपको मालूम नहीं कि यह बलिपुर प्रदेश और उसके हेग्गड़े का पद चालुक्य चक्रवर्ती के आश्रित कम्ब राजा के अधीन था और यह प्रदेश वनवासी प्रदेश के अन्तर्गत था। वर्तमान चक्रवर्ती विक्रमादित्य के भाई जयसिंह स्वयं इस प्रदेश का निर्वहण कर रहे थे। किसी पूर्वकृत पुण्य के फलस्वरूप प्रभु पर चक्रवर्ती का सहोदर से भी ज्यादा स्नेह और विश्वास जम गया। जयसिंह अपने बड़े भाई विक्रमादित्य चक्रवर्ती के विरुद्ध षड्यन्त्र कर गद्दार बना प्रभु ने चक्रवर्ती का सहायक बनकर जयसिंह की गद्दारी का दमन करके सहोदरकण्टक का निवारण किया। इसलिए चालुक्य चक्रवर्ती ने वनवासी प्रदेश के बलिपुर प्रदेश को अलग कर उसे पोय्सल राज-व्यवस्था के अन्दर विलीन कर दिया। इसके पश्चात् हमारे हेग्गड़े इस प्रदेश के हेगड़े के पद पर नियुक्त हुए। परन्तु चालुक्य चक्रवर्ती ने अपनी कृतज्ञता दर्शाने के लिए स्वतन्त्र राज्य करने की स्वीकृति दी और पट्टमहादेवी शान्तला 357
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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