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________________ माचि, उसके लिए | " "L 'क्या कहा ?' "मैं साफ कहती हूँ, सुनिए। उसे स्पष्ट मालूम हो गया है कि वह चाहे कुछ भी करे, राजकुमार बल्लाल उसकी लड़की से शादी करना स्वीकार नहीं करेंगे, वे हमारी पद्यला से ही शादी करेंगे, कसम खाकर उन्होंने वचन दिया है। वह हेग्गड़ती खुद राजकुमार की सास नहीं बन सकती क्योंकि बल्लाल इसमें बाधक हैं। अगर वह नहीं होगा तो उसके लिए आगे का काम सुगम होगा।" बात समाप्त करके वह उसकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में रही। मरियाने ने कोई जवाब नहीं दिया। चामव्वे ने समझा कि बात उनके दिमाग में कुछ बैठी है। दाँव लगा समझकर उसी तर्ज पर उसने बात आगे बढ़ायी । "इसीलिए अन्तिम घड़ी में उसने अकेले अपने पति को भेजा था, हम पर दोष आरोपित करने को। किस्मत की बात है कि हम पहले ही से होशियार हो गये, नहीं तो युवराज और युवरानी सोचते कि हमने ही जानबूझकर आमन्त्रण नहीं भेजा। " " 'एक बात तो तय है कि आमन्त्रण पत्र नहीं गया । " " वह क्यों नहीं गया ?" चामव्वे ने सवाल किया। "क्यों नहीं गया, यह अब भी समस्या है। परन्तु इतना निश्चित है कि आमन्त्रण पत्र गया नहीं। पत्र न पहुँचने पर भी वह ठीक समय पर कैसे आया. यह भी समस्या है।" 'कुतन्त्र से अपरिचित आपके लिए सभी बातें समस्याएँ ही हैं। आमन्त्रण-पत्र हुँचने पर वह आया और झूठ बोल गया कि नहीं पहुँचा । " I 12 'मैंने सत्र छान-बीन की, कई तरह से परीक्षा कर डाली, इससे यह निश्चित हे कि आमन्त्रण पत्र नहीं गया।" " 'हमपर अविश्वास करके युवराज ने अलग पत्र भेजा होगा । " "छि:, यह सोचना बड़ा अन्याय है। युवराज पर दोषारोपण करनेवाली तुम्हारी बुद्धि महाकलुषित हो गयी हैं, यही कहना पड़ेगा। तुम्हें ऐसा जिन्दगी भर नहीं सोचना चाहिए। " - " तो वह ठीक मुहूर्त के समय कैसे पहुँच गया ? अपनी तरफ से और गाँववालों की तरफ से भेंट- बाँट उपनयन के लिए ही लाया था, इसलिए उसका आना एक आकस्मिक संयोग तो हो नहीं सकता न। " 11 'चाहे कुछ भी हो, यह प्रसंग ही कुछ विचित्र बन गया है मेरे लिए।" "विचित्र बन गया हो या सचित्र उससे क्या होना जाना है? अब तो आगे का विचार करें। बड़े राजकुमार को मरने के लिए युद्ध क्षेत्र भेजकर युवरानी बिट्टिदेव वगैरह को अपने यहाँ बुला लेने के क्या माने होते हैं ? बड़े राजकुमार को मृत्यु-मुन पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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