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________________ एचिराज और पोचिकच्चे की बेटी नहीं। यदि वह परम घातुकी हो तो मैं उससे दुगुनीचौगुनी घातुकी बन जाऊँगी। इस चामच्चे की बुद्धि-शक्ति और कार्य साधने के तौरतरीकों के बारे में खुद उसका पाणिग्रहण करनेवाला भी नहीं जानता, हेग्गड़ती क्या चीज है। उस हेग्गड़ती के मन्त्र-तन्त्र से अपनी रक्षा के लिए पहले सोने का एक रक्षायन्त्र बनवा लेना चाहिए। यह बात मन में आते ही किसी को पता दिये बिना वह सीधी वामशक्ति पण्डित के घर चली गयी। वहाँ उसने उससे केवल इतना कहा, "देखिए पण्डितजी, मेरा और मेरे बच्चों का नाश करने के लिए वामशक्तियों का प्रयोग चल रहा है। उसका कोई असर न पड़े, ऐसा रक्षायन्त्र तैयार कर दें जिसे किसी जेवर के साथ छिपाकर पहिने रख सकूँ। परन्तु किसी तरह से यह रहस्य खुलना नहीं चाहिए। आपको योग्य पुरस्कार दूंगी।" "हाँ, दण्डनायिकाजी, परन्तु यह काम अपन लोगों की बुराई के लिए कौन कर रहे हैं, यह मालूम हो तो आपकी रक्षा के साथ उस बुराई को उन्हीं पर फेंक दूंगा।" दामशक्ति पण्डित बोला। "इसको बुराई करनेवालों पर ही फेर देना अगला कदम होगा। वह विवरण भी दूँगी। फिलहाल मुझे और मेरी बच्चियों के लिए रक्षायन्त्र तैयार कर दीजिए।" "अच्छा, दण्डनायिकाजी, एक यन्त्र है, उसका नाम 'सर्वतोभद्र' है। उसे तैयार कर दूंगा। परन्तु आपको इतवार तक प्रतीक्षा करनी होगी। वह धारण करने पर सबसे पहले भर!-निवारण होगा फिर इष्टार्थ पूर्ण होंगे. फलस्वरूप आप सदा खुश रहेंगी, भाग्य खुलेगा, प्रतिष्ठा बढ़ेगी। "हाँ, यही चाहिए। परन्तु यह बास पूर्णत: गुप्त रहे । कुल चार यन्त्र चाहिए।" "जो आज्ञा।" "सभी यन्त्रों के पत्ते सोने के ही बनाइये, उसके लिए आप ये बीस मुहरें लें। काफी हैं न, इन्हें ताम्बूल में रखकर देना चाहिए था, मैं यों ही चली आयी, अन्यथा न समझें।" "कोई हर्ज नहीं, इसमें अन्यथा समझने की बात ही क्या है ? इतवार के दिन यन्त्र लेकर मैं खुद ही..." __"न, मैं ही आऊँगी, तभी पुरस्कार भी ,गी।" कहकर दण्डनायिका वहाँ से निकली। __ वामशक्ति पण्डित ने गुन लिया कि अब किस्मत खुलेगी। अब होशियारी से इस बात का ख्याल रखना होगा कि कोई उल्टी बात न हो। उसके लौटने के पहले ही दण्डनायक घर जा चुके थे। अहाते में कदम रखते ही उसे खबर मिल गयी। आमतौर पर वह बाहर सवारी लेकर हो जाया करती थी, पर आज इस उद्देश्य से कि किसी को पता न लगे, वह आँख बचाकर वापशक्ति पट्टमहादयी शानला :: 347
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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